आतंकवाद के उद्भव और विकास पर व्यापक चर्चा हो चुकी है अब इस दावानल के खात्मे के लिए हमें बहुत कुछ करना होगा | आतंकवाद का स्थायी इलाज़ कभी भी सिर्फ़ बन्दूक से नही किया जा सकता वरन यह तो ऐसी चुनौती है जिसको साम , दाम , दण्ड, भेद की नीति के अनुसार ही समाप्त किया जा सकता है | आतंकवाद विश्व की सम्पूर्ण ६.६ अरब जनसँख्या के लिए भी ऐसी चुनौती बन चुका है की इसकी जड़ें हमें दुनिया के कोने - कोने में सुखानी पड़ेंगी, यह एक ऐसी उन्मादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है जिसके लिए भौतिक संसार में बिना नैतिक आधार के किए गए खून-खराबे और मरने - मारने की बात को फ़क्र समझा जाता है | यह राक्षस इतना विशाल हो चुका है कि हम १, २ या ५ वर्षों के सीमित समय में इसको पूरी तरह से नहीं समाप्त कर सकते हैं | यदि आज से कमर कस ली जाए तो २०२५ तक का मिशन बनाकर साफ़ किया जा सकता है |
स्थायी और दूरगामी पहल का पहला चरण सिलसिलेवार तरीके से वैचारिक चोट करना है |
वैचारिक चोट करने का मतलब होगा आतंक को पोषित और पल्लवित करने वाली मानसिकताओं को जनमत के सामने पूरी तरह नंगा कर दें | आतंकी विचारों स्त्रोतों को सुखा कर राष्ट्रवाद से सींच दिया जाए | यह कार्य संपन्न करने के लिए हमें यह देखना पड़ेगा कि विचारधारा के स्त्रोत कौन से हैं | मेरी समझ में आज के विश्व में ९५% आतंकी घटनाएँ मजहब की आड़ लेकर अंजाम दी जा रही हैं | क्यों न शुरुआत इस मजहबी आतंक को मात देकर की जाए | मेरी समझ में इसके लिए निम्न उपायों को काम में लाया जा सकता है |
१. सबसे पहले मज़हबी अवधारणा को इतना कमजोर करना होगा कि वो राष्ट्रवाद से सामना करने से पूर्व हज़ार बार सोचे ,ऐसा करने के लिए हमें वैज्ञानिक चिन्तनों को बढ़ावा देना होगा , मजहबी कट्टरता जैसी बेबुनियाद विचारधारा को सिर्फ़ उच्च स्तर के चिन्तनों से बढ़ावा दिया जा सकता है | विज्ञान की उन्नत समझ जीवन, मरण , जन्नत , जहन्नुम , कियामत इत्यादि के दुष्प्रभाव से स्थायी रूप से मुक्त कर सकता है , ऐसे में सिर्फ़ वसुंधरा ही कर्मभूमि साबित होगी और मजहबी उन्माद की कमर टूट जायेगी |
२ . भारत जैसे देश में आपको मजहबी उन्माद से मुक्ति दिलाने के लिए सर्वधर्म के राष्ट्रवादियों जैसे , डॉ कलाम, जॉर्ज फ़र्नांडिस , आरिफ मोहम्मद खान , साजिद रशीद , एम् . जे . अकबर , मनिंदर जीत सिंह बिट्टा , अरुण शौरी जैसे लोगों को राष्ट्रीय पटल पर आगे ले कर जाना होगा ताकि ये लोग सही नेतृत्व से आतंकवाद की कमर तोड़ सकें|
३. आतंक की नर्सरियों को बगैर वोट बैंक के लालच के ही तुंरत प्रभाव से समाप्त किया जाना चाहिए जो की दीनी तालीम की आड़ में कट्टरता की पोषक हैं |
४.अल्पसंख्यकों पर हो रहे सामाजिक अन्याय और भेदभाव को ख़त्म करने की दिशा निर्धारण हेतु राष्ट्रवादी चिंतकों का कार्यवाहक दल बनाया जाए जो कि किसी मजहब विशेष के प्रति अपना पूर्वाग्रह सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने लिए ही रखते हों |
५. अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी वैचारिक आंदोलनों का नेतृत्व भारत को ही करना चाहिए क्योंकि पश्चिमी देश अब सिर्फ़ बन्दूक की भाषा ही बोल रहे हैं जो कि अंततः आतंकवाद को ही बढ़ावा दे रहा है |
" वैचारिक जीत आतंकियों को उनके मष्तिस्क में ही समाप्त कर देगी "|
" सत्यमेव जयते "
स्थायी और दूरगामी पहल का पहला चरण सिलसिलेवार तरीके से वैचारिक चोट करना है |
वैचारिक चोट करने का मतलब होगा आतंक को पोषित और पल्लवित करने वाली मानसिकताओं को जनमत के सामने पूरी तरह नंगा कर दें | आतंकी विचारों स्त्रोतों को सुखा कर राष्ट्रवाद से सींच दिया जाए | यह कार्य संपन्न करने के लिए हमें यह देखना पड़ेगा कि विचारधारा के स्त्रोत कौन से हैं | मेरी समझ में आज के विश्व में ९५% आतंकी घटनाएँ मजहब की आड़ लेकर अंजाम दी जा रही हैं | क्यों न शुरुआत इस मजहबी आतंक को मात देकर की जाए | मेरी समझ में इसके लिए निम्न उपायों को काम में लाया जा सकता है |
१. सबसे पहले मज़हबी अवधारणा को इतना कमजोर करना होगा कि वो राष्ट्रवाद से सामना करने से पूर्व हज़ार बार सोचे ,ऐसा करने के लिए हमें वैज्ञानिक चिन्तनों को बढ़ावा देना होगा , मजहबी कट्टरता जैसी बेबुनियाद विचारधारा को सिर्फ़ उच्च स्तर के चिन्तनों से बढ़ावा दिया जा सकता है | विज्ञान की उन्नत समझ जीवन, मरण , जन्नत , जहन्नुम , कियामत इत्यादि के दुष्प्रभाव से स्थायी रूप से मुक्त कर सकता है , ऐसे में सिर्फ़ वसुंधरा ही कर्मभूमि साबित होगी और मजहबी उन्माद की कमर टूट जायेगी |
२ . भारत जैसे देश में आपको मजहबी उन्माद से मुक्ति दिलाने के लिए सर्वधर्म के राष्ट्रवादियों जैसे , डॉ कलाम, जॉर्ज फ़र्नांडिस , आरिफ मोहम्मद खान , साजिद रशीद , एम् . जे . अकबर , मनिंदर जीत सिंह बिट्टा , अरुण शौरी जैसे लोगों को राष्ट्रीय पटल पर आगे ले कर जाना होगा ताकि ये लोग सही नेतृत्व से आतंकवाद की कमर तोड़ सकें|
३. आतंक की नर्सरियों को बगैर वोट बैंक के लालच के ही तुंरत प्रभाव से समाप्त किया जाना चाहिए जो की दीनी तालीम की आड़ में कट्टरता की पोषक हैं |
४.अल्पसंख्यकों पर हो रहे सामाजिक अन्याय और भेदभाव को ख़त्म करने की दिशा निर्धारण हेतु राष्ट्रवादी चिंतकों का कार्यवाहक दल बनाया जाए जो कि किसी मजहब विशेष के प्रति अपना पूर्वाग्रह सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने लिए ही रखते हों |
५. अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी वैचारिक आंदोलनों का नेतृत्व भारत को ही करना चाहिए क्योंकि पश्चिमी देश अब सिर्फ़ बन्दूक की भाषा ही बोल रहे हैं जो कि अंततः आतंकवाद को ही बढ़ावा दे रहा है |
" वैचारिक जीत आतंकियों को उनके मष्तिस्क में ही समाप्त कर देगी "|
" सत्यमेव जयते "
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