Varun Kumar Jaiswal

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Friday 28 November, 2008

आतंकवाद का समाधान .....भाग २ !!" ऐतिहासिक दृष्टिकोण"

आतंकवाद का समाधान हम उसकी जड़ों में मट्ठा डालकर ही कर सकते हैं | लेकिन जड़ें हैं कहाँ यह बिना जाने कोई भी कार्यवाही कमतर ही साबित होगी, और शायद दीर्घकाल में उसका प्रभाव भी जाता ही रहेगा | आज इसीलिए आतंक की जड़ों पर चर्चा की जाए, ताकि हम इस विचारधारा को सदैव के लिए समाप्त करने के लिए व्यापक पहल कर सकें |

विश्व के इतिहास की एक झलक देखने पर यह पता चलता है कि वैसे तो आतंकवादी गतिविधियाँ मानव सभ्यता की शुरूआत से ही किसी किसी रूप में सक्रीय रही हैं ,लेकिन आतंक का वर्तमान पैमाना बेहद ही अलग छवि लेकर हमारे समक्ष चुका है | भारतीय जनमानस को आतंकवाद को लेकर बेहद अलग-अलग परिभाषाओं में उलझा दिया गया है जिसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि हम समझ नही पाते कि कौन आतंकवाद का पोषक है और कौन सामान्य अपराधी | कई बार इसी विभ्रम के चलते इस जघन्य विचारधारा के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर पड़ जाती है | आम जनता तो आम जनता साथ ही हमारे राजनेताओं का बड़ा हिस्सा ठीक - ठीक आतंकवाद को समझ पाने में असमर्थ रहा है ( कई तो वोटबैंक की घटिया राजनीति के चलते भी जानते हुए अनजान बने रहते हैं ) |
आतंकवाद है क्या ? अगर हम इतिहास का अवलोकन करें तो पहले आतंकवादी हम मध्य एशिया के बर्बर जातियों को कहा जा सकता है | हूणों और तार्तारों ने संसार को अपने क़दमों तले रौंद दिया था | उनके कृत्य समकालीन युद्धपिपासु शासकों से अलग आतंकवाद की श्रेणी में इसलिए रखे जा सकते हैं , क्योंकि राज्य और व्यवस्था की पूर्ण समाप्ति ही उनका स्वमेव लक्ष्य था , जबकि अन्य शासक पराजित राज्यों में एक नई व्यवस्था लागू करने के साथ ही अपनी संस्कृति को भी साझा करते थे |

आतंकवाद का दूसरा चरण मध्य काल यहूदियों को ईसाइयत के नाम पर मारने से सम्बंधित है , जिसका पश्चाताप इसाई देश आज तक कर रहें हैं |

तीसरे चरण के आतंकवाद का आरम्भ इस्लाम के जन्म के साथ ही शुरू हो गया था जो की आज अपने वीभत्स रूप में हमारे सामने चुका है | वैचारिकता को तलवार के बल पर समाप्त कर देने की जो प्रथा इस्लामी आतताइयों ने शुरू की उनको विश्व युद्धों के रूप में सम्पूर्ण विश्व ने झेला | काफिरों को मारकर जन्नत पाने की विचारधारा बगैर किसी नैतिक आधार के जाहिलों द्वारा स्वीकार की गई और परिणाम में लाखों हत्याओं का कलंक भी लिया |

आधुनिक आतंकवाद के भारतीय स्वरुप पर विवेचना करने पर देखा जाता है नक्सलवाद एवं उग्रवाद व्यवस्था के प्रति लड़ाई है क्योंकि नक्सलवादी और उग्रवादी जीवन और सरकार को बदलने के लिए लड़ते हैं ,वहीँ आतंकवादियों अर्थात जेहादी राज्य और व्यवस्था नाम की चिड़िया को जहन्नुम रशीद कर देने के लिए जान भी देने को तैयार हैं | अतः हमें सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कैसे इस विचारधारा के स्तर से ऊपर उठ चुकी लड़ाई को मारक एवं सार्थक दिशा दी जाए | इसके विरोध में हो रही घटनाएँ सिर्फ़ प्रतिक्रियावाद की ही रूपरेखा दर्शाती हैं |
हम कह सकते हैं कि हमने यदि सही फर्क ( दुश्मन ) को पहचान लिया तो इसका सर कुचलते देर नहीं लगेगी |

" सत्यमेव जयते "

3 comments:

Gwalior Times ग्वालियर टाइम्स said...

कन्‍धार के माफीनामा, और राजीनामा का है अंजाम मुम्‍बई का कोहराम ।
भून दिया होता कन्‍धार में तो मुम्‍बई न आ पाते जालिम ।
हमने ही छोड़े थे ये खुंख्‍‍वार उस दिन, आज मुम्‍बई में कहर ढाने के लिये ।।
इतिहास में दो शर्मनाक घटनायें हैं, पहली पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहमद सईद के मंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी डॉं रूबिया सईद की रिहाई के लिये आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर खतरनाक आतंकवादीयों को रिहा करना, जिसके बाद एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर खेड़ा की हत्‍या कर दी गयी । और दूसरी कन्‍धार विमान अपहरण काण्‍ड में आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर रिरियाना और अति खुख्‍वार आतंकवादीयों को रिहा कर देना । उसी का अंजाम सामने है । तमाशा यह कि जिन्‍होंने इतिहास में शर्मनाक कृत्‍य किये वे ही आज बहादुरी का दावा कर रहे हैं, अफसोस ऐसे शर्मसार इतिहास रचने वाले नेताओं की राजनीति पर । थू है उनके कुल और खानदान पर ।

अनुनाद सिंह said...

अत्यन्त सटीक ऐतिहासिक विश्लेषण! बिना इतिहास को यथार्थ रूप मे समझे, आतंकवाद का सामना नहीं किया जा सकता। बुद्धि से ही आतंकवाद के राक्षण को जीता जा स्कता है लेकिन इसस्के किये यथार्थ से मुँह मोड़कर किसी हालत में नहीं लड़ा जा सकता।

विवेक said...

आपने बहुत अच्छे संदर्भ दिए हैं। बढ़िया तरीके से पेश किए गए अहम विश्लेषण को पढ़कर अच्छा लगा। बधाई।