आज एक बड़ी अजीब सी बात मन में बार - बार कौंध रही है , क्या ब्लोगिंग की दुनिया वास्तव में उतनी रोचक है , जितनी पहली नजर में हमें समझ में आती है ? अगर आप इसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो... जनाब यह तो मैंने आप से पूछा है !!! क्यों खा गए न चक्करघिन्नी | सोचेंगे ये कैसा बेतुका सा प्रश्न है ? लेकिन बंधू यह प्रश्न बेहद ही जरूरी है क्योंकि नए ब्लोगरों का भविष्य और उनकी प्रेरणा ( ये दोनों ही नाम किसी बालाजी टेलीफिल्म्स के अझेल से धारावाहिक से लिए गए हैं , अब मैं एकता कपूर की तरफ़ से कापी-राइट के मुकदमे किए जाने और थोडी सी मुफ्त की पब्लिसिटी पाने का स्वाभाविक अधिकारी हूँ ) इस प्रश्न के संतोषजनक उत्तर पर ही निर्भर करते हैं | साथ- साथ कुछ और बातें या यूँ कहे कि उत्सुकताएँ भी मन को रह-रहकर कचोटती रहती हैं जैसे कि कुछ लोग इस नई चिडिया ( ब्लॉग ) के बारे में जानने के तुंरत बाद ही जोर-शोर से जीवन की सारी रामायण लिख मारने के लिए दौड़ पड़ते है , किंतु देखा यह जाता है कि सारा जोश वार्षिक दस-दिवसीय रामलीला के सत्र की तरह ही समाप्त हो जाता है | अभी - अभी का एक ताजा उदहारण मैं आपको देता हूँ ,मेरे एक मित्र तक़रीबन दो हफ्ते पहले भागते हुए मेरे पास आए और बोले वरुण जी मेरी भी अंगुलियाँ मचल रही हैं अब मैं भी इसी साधन से ( ब्लॉग ) सामाजिक क्रांति लाने ( असल में नेता बनने की इच्छा काफी समय से थी किंतु बाहुबल और धनबल में मात खाते रहे )के सपने को पूरा कर के ही दम लूँगा | अब "क्रांति ( दिल्ली ) दूर नहीं" के नारे के साथ उनके चिट्ठे का शुभारम्भ भी हुआ | तकनीकी रूप से ब्लॉग और लेखन को सवांरने का जिम्मा मैंने लिया , खैर शुरुआत हो गयी | ढेर सारी अशुद्धियों के बावजूद वो पोस्ट लिखने में सफल रहे | मार्केटिंग का जिम्मा अग्रीगेटरों को सौंपा गया | पोस्ट प्रकाशित होने पर उनकी खुशी ऐसे प्रकट हो रही थी जैसे की गृहस्थ के घर बछडे ने जन्म लिया हो | बेचारे न अगले तीन दिनों तक न ख़ुद सोये और ना मुझे सोने दिया | एक के बाद एक तीन पोस्ट लिख मारीं | ख़ुद को कृष्ण और ब्लॉग को गीता समझ बैठे | वैसे तो उनके पोस्टों में थोड़ा बहुत दम भी होता था और शैली भी बदलते ज़माने की सूचक थी , अतः थोड़े बहुत पाठक और इक्का-दुक्का कमेंट्स मिले | लेकिन पिछले १० दिनों से उनकी अतिसक्रियता , निष्क्रियता में तब्दील हो गयी | मैंने पूछना चाहा तो उन्होंने ये कहा कि ब्लोगरी कर के भी आज तक कोई प्रधानमंत्री बना है ........अतः मुझे चुप हो जाना पड़ा लेकिन उनके जैसा सामर्थ्यवान साथी ब्लोगिंग की दुनिया में खोने का दुःख मुझे सदैव सालता रहेगा | ऐसा फ़िर न हो अतः रोचकता बनाये रखने के लिए आवश्यक उपाय मुझे आप लोग अवश्य सुझाइए .|...............................उपरोक्त प्रश्न के उत्तर हेतु मार्गदर्शन प्रदान करें | उत्तर की प्रतीक्षा में ............................................!!!!!!!!!!!!!! धन्यवाद |
Monday 17 November, 2008
at 12:26 pm | 0 comments |
ब्लॉग लेखन की दुनिया कितनी रोचक .............?????
आज एक बड़ी अजीब सी बात मन में बार - बार कौंध रही है , क्या ब्लोगिंग की दुनिया वास्तव में उतनी रोचक है , जितनी पहली नजर में हमें समझ में आती है ? अगर आप इसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो... जनाब यह तो मैंने आप से पूछा है !!! क्यों खा गए न चक्करघिन्नी | सोचेंगे ये कैसा बेतुका सा प्रश्न है ? लेकिन बंधू यह प्रश्न बेहद ही जरूरी है क्योंकि नए ब्लोगरों का भविष्य और उनकी प्रेरणा ( ये दोनों ही नाम किसी बालाजी टेलीफिल्म्स के अझेल से धारावाहिक से लिए गए हैं , अब मैं एकता कपूर की तरफ़ से कापी-राइट के मुकदमे किए जाने और थोडी सी मुफ्त की पब्लिसिटी पाने का स्वाभाविक अधिकारी हूँ ) इस प्रश्न के संतोषजनक उत्तर पर ही निर्भर करते हैं | साथ- साथ कुछ और बातें या यूँ कहे कि उत्सुकताएँ भी मन को रह-रहकर कचोटती रहती हैं जैसे कि कुछ लोग इस नई चिडिया ( ब्लॉग ) के बारे में जानने के तुंरत बाद ही जोर-शोर से जीवन की सारी रामायण लिख मारने के लिए दौड़ पड़ते है , किंतु देखा यह जाता है कि सारा जोश वार्षिक दस-दिवसीय रामलीला के सत्र की तरह ही समाप्त हो जाता है | अभी - अभी का एक ताजा उदहारण मैं आपको देता हूँ ,मेरे एक मित्र तक़रीबन दो हफ्ते पहले भागते हुए मेरे पास आए और बोले वरुण जी मेरी भी अंगुलियाँ मचल रही हैं अब मैं भी इसी साधन से ( ब्लॉग ) सामाजिक क्रांति लाने ( असल में नेता बनने की इच्छा काफी समय से थी किंतु बाहुबल और धनबल में मात खाते रहे )के सपने को पूरा कर के ही दम लूँगा | अब "क्रांति ( दिल्ली ) दूर नहीं" के नारे के साथ उनके चिट्ठे का शुभारम्भ भी हुआ | तकनीकी रूप से ब्लॉग और लेखन को सवांरने का जिम्मा मैंने लिया , खैर शुरुआत हो गयी | ढेर सारी अशुद्धियों के बावजूद वो पोस्ट लिखने में सफल रहे | मार्केटिंग का जिम्मा अग्रीगेटरों को सौंपा गया | पोस्ट प्रकाशित होने पर उनकी खुशी ऐसे प्रकट हो रही थी जैसे की गृहस्थ के घर बछडे ने जन्म लिया हो | बेचारे न अगले तीन दिनों तक न ख़ुद सोये और ना मुझे सोने दिया | एक के बाद एक तीन पोस्ट लिख मारीं | ख़ुद को कृष्ण और ब्लॉग को गीता समझ बैठे | वैसे तो उनके पोस्टों में थोड़ा बहुत दम भी होता था और शैली भी बदलते ज़माने की सूचक थी , अतः थोड़े बहुत पाठक और इक्का-दुक्का कमेंट्स मिले | लेकिन पिछले १० दिनों से उनकी अतिसक्रियता , निष्क्रियता में तब्दील हो गयी | मैंने पूछना चाहा तो उन्होंने ये कहा कि ब्लोगरी कर के भी आज तक कोई प्रधानमंत्री बना है ........अतः मुझे चुप हो जाना पड़ा लेकिन उनके जैसा सामर्थ्यवान साथी ब्लोगिंग की दुनिया में खोने का दुःख मुझे सदैव सालता रहेगा | ऐसा फ़िर न हो अतः रोचकता बनाये रखने के लिए आवश्यक उपाय मुझे आप लोग अवश्य सुझाइए .|...............................उपरोक्त प्रश्न के उत्तर हेतु मार्गदर्शन प्रदान करें | उत्तर की प्रतीक्षा में ............................................!!!!!!!!!!!!!! धन्यवाद |
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