Varun Kumar Jaiswal

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Saturday 8 November, 2008

भारत की है कहानी, सदियों से भी पुरानी..............!

आज मैंने अपने देश पर कुछ लिखने का प्रयास किया है |
भारत की कहानी को पूरी तरह से लिखने का प्रयत्न शायद एक जन्म में भी नही किया जा सकता | फ़िर भी कुछ बातों का उल्लेख करने पर विचारों को राहत अवश्य मिल सकती है |
प्रारम्भ करता हूँ कुरुवंश से जब महाराज भरत के द्वारा इस उपमहाद्वीप को एक सूत्र में पिरोने के कारण हमारे देश को भारत कहा गया | हम प्राचीन काल से ही इसे मातृभूमि के रूप में स्वीकार करते रहे हैं | अतः इस भारत भूमिको अपनी माँ मानने से कभी भी हमारे पूर्वजों को समस्या नही रही | सभ्यता की व्यापक सूचनाये हमे पूरी तस्वीर के पहलुओं से परिचित कराने का प्यास करती हैं | कहा जाता है कि महाभारत ऐतिहासिक रूप से २९०० वर्ष एवं पौराणिक रूप से ५१५० वर्ष पुरानी घटना है | इससे पूर्व की घटनाओं में मिथकीय विरोधाभाष मिलता है , अतःउनको इतिहास का हिस्सा मानना गंभीर भूल मानी जा सकती है | महाभारत की अभूतपूर्व घटना ने भारत को जीवन के मूल्यों से परिचित कराया | इस समय ने हमे दो महानतम व्यक्तिवों से हमारी धरती को सारगर्भित करनेका प्रयास किया | प्रथम स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वितीय महर्षि वेदव्यास जी | श्रीकृष्ण प्रेमा-वतार माने जाते हैं | यद्यपि लोग उनको साक्षात ईश्वरीय अवतार मानते हुए उनके द्वारा किए गए कार्यों को अतुलनीय मानते हैं , किंतु वर्तमान विश्व को कृष्ण की गीता से अधिक मुरली की आवश्यकता है | उपदेशों का स्थान यदि प्रेम और कर्तव्य ले सकें तो यह विश्व सदा के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर हो जायेगा | वेदव्यास जी के उद्भव ने भारतीय जनमानस को सर्वप्रथम साहित्य सुलभ कराया | महर्षि ने वेदों को चार भागों में बांटा , अट्ठारह पुराणों को सर्वसम्मत रूप दिया ,गीता की उत्कृष्टता ने जनता को सांस्कृतिक जीवनमूल्य से परिचित कराया |
इस प्रकार प्रथम कालखंड में पहली बार लिखित सभ्यता और इतिहास के रूप में भारतीयों को विश्व-पटल पर सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा दिया |
दूसरे भाग में वैदिक् काल की सामयिक परिस्तिथियों का अध्ययन किया जा सकता है | इस काल में महाभारत काल के उन्नत दर्शन को विक्षिप्त कर दिया गया | अध्ययन का स्थान कर्मकांडो ने ले लिया एवं मानव-मात्र कीव्यवस्था को वर्ण-व्यवस्था ने छिन्न-भिन्न कर दिया | तथापि खोज एवं अन्वेषण कार्य चलते रहे , साथ ही चिकित्सा एवं खगोल की धारा में अविरल बहाव भी जारी रहा | सुश्रुत एवं चरक ने आयुर्विज्ञान को नया क्षितिज उपलब्ध कराया | आर्याभट् ने खगोल एवं गणित में भारत को सदियों आगे पंहुचा दिया | इस भाग के उत्तरार्ध में सामाजिक जीवन व्यवस्था डगमगाने ही लगी थी कि धम्म रक्षक बुद्ध एवं महावीर ने जन्म लेकर धरा को तृप्त किया | समाज को नए सिरे से दीक्षित करने का प्रयास भी हुआ | सत्य , अहिंसा , अस्तेय , अपरिग्रह , ब्रह्मचर्य जैसे सिद्धातों ने जनमानस को बर्बरता से सहिष्णुता की ओर बढाया जो की आज भी हमारी अमिट पहचान है | इसी काल में संस्कृत के स्थान पर पाली भाषा को स्थान एवं जनभाषा का रूप दिया गया |
तृतीय कालखंड भारत-भूमि के लिए सदैव से अधिक चुनौतियों को लेकर आया | प्रथम बार बाह्य आक्रमण का सामना करना पड़ा और वो भी बर्बरता के लिए कुख्यात यूनान एवं मिश्र की जंगली सभ्यताओं के रूप में , किंतु धन्य हो इस चिर वसुंधरा ने उनको भी स्वयं में समेट कर दर्शन को उपलब्ध करा दिया | यह महा जनपदों का काल था | मगध का उदय भारत को एकीकृत भू-भाग में तब्दील कर देने के लिए पर्याप्त सिद्ध हुआ | आर्यावर्त की गरिमा बरक़रार रही | भारत ने इस काल में बर्बर आक्रमणों विशेषतया शकों, कुषाणों और हूणों को भली प्रकार से सिर्फ झेल लिया वरन अपनी सनातन संस्कृति में समाहित भी कर लिया | सम्राट अशोक का जन्म इस काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना रही |
इसके बाद के काल खंड में भारत ने एक सूत्र में बधें विचारों को टूटते हुए देखने का कष्ट भी उठाया | सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात जैसे भू-भाग खंड-खंड में बिखरने लगा और साथ ही बाहरी सभ्यताओं के भी प्रवेश का मार्ग हमारी कमजोरियों के कारण प्रशस्त हो गया | व्यापक व्याधियों के बाद भी दर्शन, गणित और खगोल में भारत की उपलब्धियों को बढाते रहे | आदि शंकराचार्य का जन्म इस काल की एक प्रमुख घटना मानी जा सकती है |
अगले कालखंड में एक बर्बर सभ्यता किंतु महान दर्शन इस्लाम का भू-भाग में प्रवेश हुआ | अब तक केंद्रीय सत्ता का कोई भी प्रतीक रहने से इस बर्बर सभ्यता के आगमन को अवरूद्ध किया नही जा सका | पृथ्वीराज चौहान की पराजय के साथ ही इस्लाम ने भारत की केंद्रीय सत्ता पर अधिपत्य जमा लिया एवं स्वयं के विशिष्ट किंतु बर्बर दार्शनिक प्रहारों के माध्यम से हमारी धरोहरों को नष्ट करने की पूरी-पूरी कोशिश की | कालांतर में उन्होंने अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से विनाशित को संतुलित करने का भी उत्कृष्ट प्रयास किया | इस काल के चरमबिन्दु पर भारत भूमि ने व्यापार एवं सांस्कृतिक रूप से उत्कृष्ट उपलब्धियों को प्राप्त किया | तत्कालीन विश्व में भारत का कुल हिस्सा व्यापारिक रूप से एक चौथाई था | सांस्कृतिक रूप में तुलसी ,सूर ,कबीर, मीरा,रसखान,जायसी ,ज्ञानेश्वर,तुकाराम ,नानक,जम्भेश्वर ,तिरुवल्लुवर , सूफीवाद आदि के उद्भव ने समाज को नई ऊचाइयों तक पहुँचाया |
यूरोपीय शक्तियों एवं अंग्रेजों के शासन काल के दौरान भारत ने सामाजिक जागरण को प्राप्त किया जिसमे ऋषि दयानंद, राजा राम मोहन राय , विद्यासागर ,केशवचंद्र सेन , स्वामी विवेकानंद , परमहंस , महात्मा गाँधी , बंकिमचंद्र , गोखले ,तिलक ,गोपालाचारी, मदनमोहन मालवीय ,सर सय्यद अहमद खान , राधाकृष्णन इत्यादि ने महती भूमिका निभायी |
स्वतंत्रता के बाद समाज को नई दिशा शास्त्री जी , लोकनायक, जे- कृष्णमूर्ति ,आचार्य रजनीश, स्वामी रामदेव , महेश योगी , श्री श्री रविशंकर, आरिफ मोहम्मद खान जैसे लोग दे रहे हैं |
वर्तमान चुनौतियों का सामना करके हमें भारत के समाज की इस अवस्था को जो इतने कठिन परिश्रम एवं ३००० वर्षो के बलिदान प्रयास से तैयार हुई है , सनातन रखना है |
भारत माता की जय |