Varun Kumar Jaiswal

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Sunday 30 November, 2008

आतंकवाद का खात्मा ....मिशन २०२५ ...क्या आप हमारे साथ हैं ?....व्यक्तिगत प्रयास ...भाग - ४

आतंकवाद नाम की महामारी को वैचारिक रूप से ही ख़त्म कर देने की चर्चा के बाद अब हमें मिशन २०२५ की कार्यवाही को लक्ष्य बनाकर चलना ही होगा | यदि आज से ही हम सभी मिलकर ईमानदारी से कदम मिलाकर चलें तो यह घृणित विचारधारा इस पावन वसुंधरा से कूच कर जायेगी |

आतंकवाद ने विश्व को सिवाय नफरत और बर्बादी के और कुछ भी नहीं दिया है अतः जो लोग इसके दंश से वाकिफ हैं वे सभी हमारे इस मिशन में स्वतः प्रेरणा से ही जुड़ जायेंगे | यह समस्या इतनी बड़ी है कि आम आदमी की हैसियत से हम इसके समाधान के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं लेकिन हम इसका समर्थन चाहे वो दबे स्वर में ही क्यों हो ? करने वालों से तर्क- वितर्क तो कर ही सकते हैं |

इसका समर्थन करने वाले या इस विचारधारा के प्रति अपनी सहानुभूति दर्शाने वाले लोगों के खिलाफ हम सभी को जातीय या मजहबी दीवारों को तोड़कर ऐसी आवाज़ बुलंद करनी होगी कि उनके हौसले ही टूट जायें | हमें हर प्रकार की कट्टरता से लड़ाई लड़नी पड़ेगी | आस-पास के सभी लोगों की मजहबी सीमाओं को अपने तर्कों से खोखला करने का प्रयत्न कीजिये ताकि उसकी सीमाएं अंततः सिमटकर राष्ट्रवाद के दायरे में सिमट जाएँ |

नाकारा राजनेताओं को चुनने की बजाय खुली बहस के माध्यमों से स्पष्ट विचारधाराओं को पोषित करने वाले लोगों का चुनाव कीजिये | सवाल पूछने ख़ुद जायें, पड़ोसी के जाने की राह देखें | अपने क्षेत्र के वर्तमान जनप्रतिनिधि के पास जाकर आतंकवाद से लड़ने और बचाव के लिए स्पष्ट ब्लूप्रिंट की मांग करें |

अपने परिवार और रिश्तेदारों में प्रत्येक स्त्री-पुरूष , बुजुर्ग हो या बच्चे अपनी स्पष्ट राय उन सभी के सामने नियमित रूप से रखें और साथ ही साथ समाज के प्रत्येक वर्ग को अपने विचारों से जोड़ने का प्रयास करिए |आतंकवाद जैसी चीजों पर अपने आस-पास के हर व्यक्ति का नजरिया जानने की भरसक कोशिश करते रहें |व्यकिगत रूप से आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण लिया जा सकता है |

कड़े कानूनों , अवैध बांग्लादेशियों की वापसी , समान नागरिक संहिता , धारा ३७० , राष्ट्रिय एकता एवं अखंडता के मुद्दों पर और साथ ही साथ नक्सलवाद , उग्रवाद , प्रतिक्रियावाद जैसी विषमताओं पर सामाजिक जागरण की भूमिका भी निभाते रहने की पहल हम सभी को करनी ही होगी |

उपरोक्त सुझाओं के आलावा भी हम और क्या - क्या कर सकते हैं कृपया अपनी टिप्पणियों के माध्यम से हमें सूचित करें | ये सारे प्रयास व्यक्तिगत रूप से यदि किए जाएँ तो आतंक नाम को आने वाले सालों में पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है |

" क्या आप हमारे साथ हैं , यदि हाँ तो आइये संकल्प ले | "


" सत्यमेव जयते "

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आतंकवाद का खात्मा ...वैचारिक चोट ....भाग -३

आतंकवाद के उद्भव और विकास पर व्यापक चर्चा हो चुकी है अब इस दावानल के खात्मे के लिए हमें बहुत कुछ करना होगा | आतंकवाद का स्थायी इलाज़ कभी भी सिर्फ़ बन्दूक से नही किया जा सकता वरन यह तो ऐसी चुनौती है जिसको साम , दाम , दण्ड, भेद की नीति के अनुसार ही समाप्त किया जा सकता है | आतंकवाद विश्व की सम्पूर्ण ६.६ अरब जनसँख्या के लिए भी ऐसी चुनौती बन चुका है की इसकी जड़ें हमें दुनिया के कोने - कोने में सुखानी पड़ेंगी, यह एक ऐसी उन्मादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है जिसके लिए भौतिक संसार में बिना नैतिक आधार के किए गए खून-खराबे और मरने - मारने की बात को फ़क्र समझा जाता है | यह राक्षस इतना विशाल हो चुका है कि हम १, २ या ५ वर्षों के सीमित समय में इसको पूरी तरह से नहीं समाप्त कर सकते हैं | यदि आज से कमर कस ली जाए तो २०२५ तक का मिशन बनाकर साफ़ किया जा सकता है |
स्थायी और दूरगामी पहल का पहला चरण सिलसिलेवार तरीके से वैचारिक चोट करना है |
वैचारिक चोट करने का मतलब होगा आतंक को पोषित और पल्लवित करने वाली मानसिकताओं को जनमत के सामने पूरी तरह नंगा कर दें | आतंकी विचारों स्त्रोतों को सुखा कर राष्ट्रवाद से सींच दिया जाए | यह कार्य संपन्न करने के लिए हमें यह देखना पड़ेगा कि विचारधारा के स्त्रोत कौन से हैं | मेरी समझ में आज के विश्व में ९५% आतंकी घटनाएँ मजहब की आड़ लेकर अंजाम दी जा रही हैं | क्यों न शुरुआत इस मजहबी आतंक को मात देकर की जाए | मेरी समझ में इसके लिए निम्न उपायों को काम में लाया जा सकता है |
. सबसे पहले मज़हबी अवधारणा को इतना कमजोर करना होगा कि वो राष्ट्रवाद से सामना करने से पूर्व हज़ार बार सोचे ,ऐसा करने के लिए हमें वैज्ञानिक चिन्तनों को बढ़ावा देना होगा , मजहबी कट्टरता जैसी बेबुनियाद विचारधारा को सिर्फ़ उच्च स्तर के चिन्तनों से बढ़ावा दिया जा सकता है | विज्ञान की उन्नत समझ जीवन, मरण , जन्नत , जहन्नुम , कियामत इत्यादि के दुष्प्रभाव से स्थायी रूप से मुक्त कर सकता है , ऐसे में सिर्फ़ वसुंधरा ही कर्मभूमि साबित होगी और मजहबी उन्माद की कमर टूट जायेगी |
. भारत जैसे देश में आपको मजहबी उन्माद से मुक्ति दिलाने के लिए सर्वधर्म के राष्ट्रवादियों जैसे , डॉ कलाम, जॉर्ज फ़र्नांडिस , आरिफ मोहम्मद खान , साजिद रशीद , एम् . जे . अकबर , मनिंदर जीत सिंह बिट्टा , अरुण शौरी जैसे लोगों को राष्ट्रीय पटल पर आगे ले कर जाना होगा ताकि ये लोग सही नेतृत्व से आतंकवाद की कमर तोड़ सकें|
. आतंक की नर्सरियों को बगैर वोट बैंक के लालच के ही तुंरत प्रभाव से समाप्त किया जाना चाहिए जो की दीनी तालीम की आड़ में कट्टरता की पोषक हैं |
.अल्पसंख्यकों पर हो रहे सामाजिक अन्याय और भेदभाव को ख़त्म करने की दिशा निर्धारण हेतु राष्ट्रवादी चिंतकों का कार्यवाहक दल बनाया जाए जो कि किसी मजहब विशेष के प्रति अपना पूर्वाग्रह सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने लिए ही रखते हों |
. अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी वैचारिक आंदोलनों का नेतृत्व भारत को ही करना चाहिए क्योंकि पश्चिमी देश अब सिर्फ़ बन्दूक की भाषा ही बोल रहे हैं जो कि अंततः आतंकवाद को ही बढ़ावा दे रहा है |

" वैचारिक जीत आतंकियों को उनके मष्तिस्क में ही समाप्त कर देगी "|

" सत्यमेव जयते "

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Friday 28 November, 2008

आतंकवाद का समाधान .....भाग २ !!" ऐतिहासिक दृष्टिकोण"

आतंकवाद का समाधान हम उसकी जड़ों में मट्ठा डालकर ही कर सकते हैं | लेकिन जड़ें हैं कहाँ यह बिना जाने कोई भी कार्यवाही कमतर ही साबित होगी, और शायद दीर्घकाल में उसका प्रभाव भी जाता ही रहेगा | आज इसीलिए आतंक की जड़ों पर चर्चा की जाए, ताकि हम इस विचारधारा को सदैव के लिए समाप्त करने के लिए व्यापक पहल कर सकें |

विश्व के इतिहास की एक झलक देखने पर यह पता चलता है कि वैसे तो आतंकवादी गतिविधियाँ मानव सभ्यता की शुरूआत से ही किसी किसी रूप में सक्रीय रही हैं ,लेकिन आतंक का वर्तमान पैमाना बेहद ही अलग छवि लेकर हमारे समक्ष चुका है | भारतीय जनमानस को आतंकवाद को लेकर बेहद अलग-अलग परिभाषाओं में उलझा दिया गया है जिसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि हम समझ नही पाते कि कौन आतंकवाद का पोषक है और कौन सामान्य अपराधी | कई बार इसी विभ्रम के चलते इस जघन्य विचारधारा के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर पड़ जाती है | आम जनता तो आम जनता साथ ही हमारे राजनेताओं का बड़ा हिस्सा ठीक - ठीक आतंकवाद को समझ पाने में असमर्थ रहा है ( कई तो वोटबैंक की घटिया राजनीति के चलते भी जानते हुए अनजान बने रहते हैं ) |
आतंकवाद है क्या ? अगर हम इतिहास का अवलोकन करें तो पहले आतंकवादी हम मध्य एशिया के बर्बर जातियों को कहा जा सकता है | हूणों और तार्तारों ने संसार को अपने क़दमों तले रौंद दिया था | उनके कृत्य समकालीन युद्धपिपासु शासकों से अलग आतंकवाद की श्रेणी में इसलिए रखे जा सकते हैं , क्योंकि राज्य और व्यवस्था की पूर्ण समाप्ति ही उनका स्वमेव लक्ष्य था , जबकि अन्य शासक पराजित राज्यों में एक नई व्यवस्था लागू करने के साथ ही अपनी संस्कृति को भी साझा करते थे |

आतंकवाद का दूसरा चरण मध्य काल यहूदियों को ईसाइयत के नाम पर मारने से सम्बंधित है , जिसका पश्चाताप इसाई देश आज तक कर रहें हैं |

तीसरे चरण के आतंकवाद का आरम्भ इस्लाम के जन्म के साथ ही शुरू हो गया था जो की आज अपने वीभत्स रूप में हमारे सामने चुका है | वैचारिकता को तलवार के बल पर समाप्त कर देने की जो प्रथा इस्लामी आतताइयों ने शुरू की उनको विश्व युद्धों के रूप में सम्पूर्ण विश्व ने झेला | काफिरों को मारकर जन्नत पाने की विचारधारा बगैर किसी नैतिक आधार के जाहिलों द्वारा स्वीकार की गई और परिणाम में लाखों हत्याओं का कलंक भी लिया |

आधुनिक आतंकवाद के भारतीय स्वरुप पर विवेचना करने पर देखा जाता है नक्सलवाद एवं उग्रवाद व्यवस्था के प्रति लड़ाई है क्योंकि नक्सलवादी और उग्रवादी जीवन और सरकार को बदलने के लिए लड़ते हैं ,वहीँ आतंकवादियों अर्थात जेहादी राज्य और व्यवस्था नाम की चिड़िया को जहन्नुम रशीद कर देने के लिए जान भी देने को तैयार हैं | अतः हमें सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कैसे इस विचारधारा के स्तर से ऊपर उठ चुकी लड़ाई को मारक एवं सार्थक दिशा दी जाए | इसके विरोध में हो रही घटनाएँ सिर्फ़ प्रतिक्रियावाद की ही रूपरेखा दर्शाती हैं |
हम कह सकते हैं कि हमने यदि सही फर्क ( दुश्मन ) को पहचान लिया तो इसका सर कुचलते देर नहीं लगेगी |

" सत्यमेव जयते "
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Thursday 27 November, 2008

आतंकवाद का स्थायी समाधान कैसे हो.??......भाग - १


आतंक का सही उत्तर क्या हो सकता है ?
इस विषय पर मित्रों से रात भर चर्चा करते रहने पर काफी संतोषजनक रूप से कुछ समाधानों के संकेत मिले हैं |
मैं इनको एक - एक करके आप सभी के सामने चर्चा के लिए प्रस्तुत करना चाहूँगा | विश्व के समाजों का ज्यादातर हिस्सा अब भी मध्य युग में जी रहा है जबकि राष्ट्र नाम की चिड़िया का अस्तित्व सिमटकर सिर्फ़ कबीले तक ही सीमित होता था | ऐसे वक्त में जीवन के मूल्यों को कबिलापंथी विचारकों को समझा पाना निश्चित दुरूह कार्य है |
इस आतंकवाद से निपटने के लिए व्यापक राष्ट्रीय एकता को जन्म देना होगा |
राष्ट्रीय एकता क्या है ................????????????????????????????????????????
कल एक मित्र से चर्चा करते समय उन्होंने कहा कि ऐसी संकटकालीन स्थिति का सामना पूरा राष्ट्र एक होकर कर रहा है , मैं उनके इस वक्तव्य पर अपना क्षोभ छुपा सका | उनका तर्क था कि मीडिया के माध्यम से पूरा राष्ट्र इन घटनाओं पर खेद प्रकट कर रहा है , मुंबई को देश के कोने - कोने से रक्त दान एवं आर्थिक सहायता भेजी जा रही है ,पक्ष-विपक्ष दोनों ही एक सुर से आतंकियों कि निंदा कर रहे हैं .............किंतु मैंने पूछा कि किस विपदा में ऐसा नही होता | भुज से लेकर कारगिल तक , बिहार कि बाढ़ से लेकर सुनामी तक हम भारतीय इस कथित एकता का परिचय देते रहे हैं लेकिन जबकि राष्ट्र हित के मुद्दे जैसे समान नागरिक संहिता , आतंकवाद निरोधक कानून ,धारा ३७० की समाप्ति , सामाजिक अन्याय का विरोध , बंगलादेशी घुसपैठिओं की वापसी , मतान्तरण , केन्द्रीय जांच एजेन्सी इत्यादि आतंकवाद की रोकथाम हेतु उठाये जाते हैं तो देश का नागरिक वामपंथ , धर्मनिरपेक्ष ,मुसलमान , दक्षिणपंथी , अवसरवादी इत्यादि में साफ़ तौर पर बँटा हुआ नजर आता है | इसी ने राष्ट्र की अवधारणा को इतना कमजोर कर दिया है कि हम आतंकवादियों के समक्ष घुटने टेकते हुए नजर रहे हैं | व्यापक युद्ध तो सिर्फ़ इन दीवारों को गिराकर राष्ट्रीय एकता के ही नाम पर लड़ा जा सकता है | आइये अब भी समय है , हम इस पहल को स्वीकार करें | अपना मत उनको ही दें जो इन मुद्दों पर कोई समझौता नहीं चाहते हों , तभी यह लड़ाई जीती जा सकेगी |

"सत्यमेव जयते "
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