मैं भारत की राजधानी दिल्ली आज अपनी कहानी आप सभी के सामने नए सिरे से रखनाचाहती हूँ , वैसे तो मेरे बारे में हिंदुस्तान के लोग बहु त कुछ पहले से ही जानते हैं फ़िर भी शायद कोई-कोई मुझे समझ नहीं पाया | जिन्होंने समझा उन्होंने मेरा मान बढाया और जिनके लिए मैं जमीन का सिर्फ़ एक टुकडा थी उन लोगों ने मुझे अनगिनत घाव दिए जिनकी कसक आज तक मेरे सीने पर महसूस की जा सकती है | आज मैं अपने बच्चों के गौरव का प्रतीक बन कर दुनिया के सामने खड़ी हूँ तो साथ ही मेरे अन्दर के घावों से पीड़ित होकर भी सब कुछ खामोशी के साथ बर्दाश्त कर रही हूँ | चलिए अब मेरी कहानी शुरू होती है.................................................
मेरा इतिहास ........................................!
मेरा इतिहास तबसे शुरू होता है जब आर्यवर्त , भारतवर्ष भी नहीं बना था | भरत ने कुरुवंश में जन्म लिया और बड़ा होकर आर्यावर्त का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बना | उनके नाम पर भारत हमारे देश का नाम पड़ा | मेरा जन्म काल लगभग ५२५० वर्ष पूर्व माना जा सकता है उससे पहले मैं वनक्षेत्र का एक हिस्सा थी | सम्राट भरत के बाद भीष्म जैसे महारथी ने कुरुवंश की देखरेख की | हस्तिनापुर मेरे ही प्राचीन और उत्तर प्रदेश से मिलते हुए भाग को कहते हैं | जैसे छोटे बच्चे को बचपन में ही बड़ी बीमारी का सामना करना पड़ता है , वैसे ही मुझे भी अपने प्रारंभिक जीवन में ही छल, कपट , स्वार्थ, परपीड़ा, स्त्री-अपमान, और समाज के लिए अतुलनीय पतन का काल ' महाभारत' देखना पड़ा | कहते हैं कि महाभारत का विधान , विधाता ने संसार को गीता का उपदेश देने के लिए रचा था , लेकिन मुझे इतना कष्ट देकर मेरी ही धरती पर पले-बढे भाइयों ने एक -दूसरे का रक्त बहाया वो मैं कैसे सह सकती हूँ | मेरे आंसू आज तक नही सूखे हैं । रह-रहकर कोई न कोई मुझे घाव देता रहता है । महाभारत काल के बाद मैंने मौर्या साम्राज्य के तले धीरे-धीरे अपना विकास किया | भारत की उत्तर दिशा में स्थित होने के कारण मुझे बाहर से आने वाली ताकतों ने हमेशा अपने निशाने पर रखा | मौर्य साम्राज्य के पतन के साथ ही जिस विदेशी ने सबसे पहले मुझ पर अपना कदम रखा उसका नाम था 'मिनियांदर' था | भगवान बुद्ध का नाम लेकर उसने मेरी सरजमीं को नापाक करने को की कोशिश की लेकिन उस समय मेरे बच्चों ने चूडियाँ नही पहनी हुई थी | अतः उसको मार भगाया | उसके बाद भारतीय इतिहास के स्वर्णकाल गुप्त राजाओं के शासन में भी मेरा स्थान गौरवशाली बना रहा | सम्राट हर्षवर्धन ने मुझे राजधानी का गौरव फ़िर से प्रदान किया | इसके बाद भारत ने केंद्रीय प्रशासन को खो दिया एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष को छोटे-छोटे राज्यों में बाँट दिया | पृथ्वीराज चौहान तृतीय के शासन काल तक मुझे अनेको भारतीय राजाओं ने अपने साम्राज्य का भाग बनाकर रखा | भारत के दुर्भाग्य से ताराईन की दूसरी लडाई में पृथ्वीराज की पराजय के बाद मुझे इस्लामी सभ्यता को देखने का और जीने का मौका मिला | कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुझे राजधानी बनाकर जो गौरव दिया , कुछ समय के अपवादों को छोड़कर वो आज तक बरक़रार है | इस्लाम भारत की सीमाओं में आ चुका था | इस घटना ने भारत की सभ्यता और संस्कृति को नए सिरे से परिभाषित किया | सल्तनत काल में सबसे अच्छी बात यह रही की रजिया सुलतान नाम की महिला शासक ने मुझ पर शासन किया और मर्दों के ही सक्षम होने के मिथक को तोड़ा | अल्लाउद्दीन ने फ़िर से सारे मुल्क को जीतकर एक भाग में बाँट दिया | इस दौर तक मुसलमानों ने हिंदुस्तान को अपना मुल्क स्वीकार कर लिया था | मंगोलों के आक्रमण से मेरी रक्षा अल्लाउद्दीन की सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है |
इस काल में कला और संस्कृति मेरे आँचल में भली-भांति बढ़े | कुतुबमीनार आज भी मेरे सम्मान का जीता-जागता प्रतिरूप बनकर खड़ा है | सल्तनत-काल में तैमूर लंग ने एक बार फ़िर से मुझे न भूलने वाली पीड़ा दी | उसने एक ही दिन में लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम सिर्फ़ विधर्मी होने के कारण करवा दिया |
लोदी सल्तनत को हराकर बाबर ने मुग़ल वंश की नींव रखी जिसने शायद अशोक महान के बाद पूरे भारत को पुनः एक सूत्र में पिरोकर रख दिया | अकबर , हुमायूं , जहाँगीर जैसे बादशाहों ने मुझे आधार बनाकर मुक्कमल हिंदुस्तान की नींव रख दी थी | इस दौर में मैं हिंदू-मुस्लिम एकता का सुनहरा अध्याय देखा जिसपर आज के भारत का भी भविष्य निर्भर करता है | शेरशाह शूरी और हेमचन्द्र विक्रमादित्य जैसे अल्पकालीन शासकों ने भी मुझे सम्मान दिया | लालकिला इस कालखंड की सर्वोत्तम रचना है |
लालकिला भारत की राष्ट्रीय-निष्ठा का प्रतीक बनकर शान के साथ खड़ा है | अंग्रेजों के आने से पहले ही मुग़ल राज्य की चूलें हिलनी लगीं थी | मुझ पर कुछ समय के लिए मध्य कालीन शक्ति के प्रमुख मराठों का अधिपत्य रहा | अंग्रेजो ने भारत में अपने पाँव पसारने शुरू किए तो बहादुरशाह जफ़र के नेतृत्व में मैंने असफल किंतु ऐतिहासिक रूप से अमर लडाई लड़ी | प्रारम्भ में कलकत्ता अंग्रेजों की राजधानी था , लेकिन क्रांतिकारियों के दबाव के डर से सन् १९११ में मुझे पुनः राजधानी बनने का गौरव बरक़रार हुआ | भारत को संघीय रास्ते पर अंग्रेजों ने ले जाने के सफर में राष्ट्रपति-भवन, मुग़ल गार्डन , संसद-भवन , इंडिया गेट आदि ऐतिहासिक इमारतों को निर्माण कराया | स्वतंत्रता के संघर्ष मे मेरा योगदान को कोई भी नकार नही सकता है | राष्ट्रवादियों की प्रमुख शरणस्थली रही हूँ मैं | आज़ादी की प्राप्ति के पश्चात मुझे भारत की जनता ने सर्वसम्मति से राजधानी होने का गौरव प्रदान किया और मेरे एक छोटे से हिस्से अर्थात नई दिल्ली को भारतीय गणराज्य की राजधानी घोषित कर दिया गया |
मेरा भूगोल ...................................................!
मैं सूर्य पुत्री यमुना के तट पर बसी हूँ | यमुना मेरे पूर्वी छोर से निकलते हुए दक्षिण-पूर्वे मे उत्तर प्रदेश को निकल जाती है | यमुना ने साक्षात ईश्वर के वरदान के रूप मे मुझे हज़ारों वर्षो से सिंचित किया है | यह सिर्फ़ एक नदी ही नही मेरी जीवन संवाहिका भी रही है | मैं भौगोलिक रूप से गंगा-यमुना के प्राकृतिक मैदान का एक भाग हूँ | मैं तीन ओर से हरियाणा और एक तरफ से उत्तर प्रदेश से घिरी हूँ | मेरा कुल क्षेत्रफल १४८३ वर्ग किमी है |
मेरी जनसंख्या मतलब मेरे बच्चे ..................................................!
सन २००१ की जनगणना के अनुसार मेरे बच्चो की संख्या बढ़कर १.५७ करोड़ हो गयी है जिसमे प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख की वृद्धि होती जा रही है |
सन २०१० तक यह आकड़ा बढ़कर २.०० करोड़ के भी पार हो जाने की संभावना है |
मेरी भाषा ......................................................!
भारत की राजधानी होने और हिन्दी पट्टी मे स्थित होने के कारण यूँ तो मेरी मुख्या भाषा हिन्दी है , लेकिन मेरी सरजमी पर आपको बहुभाषाओं जैसे पंजाबी, उर्दू ,अँग्रेज़ी का व्यापक प्रयोग करते हुए लोग मिलेंगे | मैने अपनी भाषागत सार्वभौमिकता को बनाए रखने मे कोई कसर बाकी नही छोड़ी है | भारत की लगभग प्रत्येक भाषा को बोलने और समझने वाले लोग आपको मेरे निवासी मिलेंगे |
मेरी कला एवम् संस्कृति ...................................!
कला एवम् संस्कृति की दृष्टि से भी मेरी भूमिका काफ़ी उन्नत मानी जा सकती है | मेरी संस्कृति पर हरियाणा , पंजाब , उत्तर प्रदेश, राजस्थान का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है |
मेरे आँचल मे शिक्षा व्यवस्था .........................................!
मैने शिक्षा के क्षेत्र मे भारत के अग्रणी संस्थानो को अपने आँचल मे समेट रखा है | बहुत सारे उच्च संस्थान जैसे अखिल भारतीय आयुर्वैदिक संस्थान , भारतीय प्रौधौगिकि संस्थान , प्रबंधन संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय , जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय , जामिया मिलिया इस्लामिया , जामिया हमदर्द , गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय , नॅशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आदि हैं | प्रति वर्ष लगभग १० लाख विद्यार्थी देश-विदेश से शिक्षा ग्रहण करने आते है |
मेरी समस्याएँ ............................................................ .!
मैं भारत की राजधानी होने के बाद भी अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त हूँ और मेरे ही आँचल मे पलने वाले राजनेता मेरी लगातार उपेक्षा करते रहे हैं जिसके फलस्वरूप मैं आज भी एक विश्व स्तर का शहर नही बन पायी हूँ |
मेरी अंतरसरचना अनेको प्रकार से कमजोर है |
उच्च स्तरीय सड़क एवम् परिवहनका अभाव मुझे कमजोर बना देता है |
स्वास्थ्य कारकों की उपेक्षा जिसके कारण प्रतिवर्ष लाखों - लोगो की मृत्यु हो जाती है |
अवैध निर्माण एवम् अनियोजित विकास ने मुझे बदसूरत बना दिया है |
प्रदूषण ने मेरी जिंदगी के तारों को भी कमजोर कर दिया है |
मैं आतंकवादियों के निशाने पर हूँ जिनका हर हमला मुझे घायल कर जाता है |
लाखों ग़रीबों को दो वक्त की रोटी भी मिल पाती है |
हर साल बहुत से लोग ठंड के मौसम मे ठिठुर कर अपनी जान गवाँ बैठते हैं |
मेरा वन क्षेत्र प्रतिदिन कम होता जा रहा है |
मैं अपराधियों की शरणस्थली बन चुकी हूँ |
जीवन देने वाली यमुना प्रदूषण के कारण त्रहिं- त्राहि कर रही है |
लाखों लोगो को शुद्ध पेयजल भी नसीब नही होता |
अपनी इन्ही समस्याओं की वज़ह से मैं आज भी सिसक रही हूँ | शायद इस बार के चुनावों मे जीतने वाले लोग मुझ पर ध्यान देंगे इसकी उम्मीद अभी भी बाकी है |........................................................... .............................. ...........तो यह था मेरी कहानी का एक हिस्सा ,आप को कैसा लगा ज़रूर बताएँ |
6 comments:
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अच्छा प्रयास है जी। आपके yourminis.com के विजेट्स बहुत समय लेते हैँ डाउनलोड मेँ। उनका रखना फायदेमन्द नहीँ लगता।
आप मौलिक और छोटी पोस्टेँ लिखेँ, वरुण जी।
शुभकामनायें।
सुन्दर! ज्ञानजी की बात पर गौर करें!
बहुत ही अच्छा लगा. आभार.
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कृपया जानकारी दुरुस्त करें - आर्यावर्त का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट शकुन्तला पुत्र भरत नहीं था, प्रथम चक्रवर्ती सम्राट नहुष! इला का पुत्र, मनु का नाती !
दिवाकर जी आपके सुझाव के लिए मेरा आभार , किंतु जहाँ तक मेरी जानकारी है इला पुत्र नहुष पौराणिक काल के मिथक के रूप में स्वीकार किए जा सकते हैं परन्तु लिखित इतिहास और सभ्यता के संकलन की दृष्टि से १९५० ईसवी पूर्व महाभारत काल ही आधुनिक भारतीय सभ्यता का प्रारम्भ माना जाता है | रामायण काल को भी मिथकीय श्रेणी में ही रखा जाता है | कृपया उचित सन्दर्भों से मार्गदर्शन करें |
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