Varun Kumar Jaiswal

" Whenever you meet me , you will come to know better "Contact: (C) + 919975664616 (O) + 912027606000

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

Thursday 27 November, 2008

एक और आतंकी हमला ....बस बहुत हुआ |


भारत पर एक और आतंकी हमला २६ नवम्बर २००८ को रात्रि .३० पर शुरू हुआ | अबकी बार निशाने पर है भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली मुंबई , हमेशा की तरह आतंकी अपने मकसद में कामयाब हो गए लगते हैं | मुंबई पुलिस के तीन जांबाज़ अफसर , छोटे - बड़े १२ जवान , १२५ से भी अधिक देशी-विदेशी नागरिक शहीद हो चुके हैं | मुठभेड़ अभी भी जारी है , शायद मरने वालों का आंकडा अभी बढ़ सकता है | कुल मिलाकर १२ आतंकी मारे गए और १० गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं |
पहली नज़र में अगर हम आंकडों और पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो यह अघोषित युद्ध की शुरुआत लगती है जिसमे पहली बार दुश्मन ने कायराना तरीके से बम - विस्फोट करने के साथ-साथ ही सार्वजनिक रूप से महत्वपूर्ण वैश्विक प्रतिष्ठानों पर हमले करते हुए मुंबई और देश की सुरक्षा के प्रति विश्वास को तार-तार करने की कोशिश की , और बहुत ही बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है | २६ नवम्बर दुनिया भर के जेहादियों के लिए ईद से कम साबित होगा | पीढी दर पीढी जेहादी इस मिशन की कामयाबी का जश्न मनाते हुए आगे की लड़ाई के लिए प्रेरणा भी जुटा पाने में समर्थ रहे |क्या यह हमला और इसकी सफलता जेहाद की स्वयम्भू परिभाषा देने वाले कायरों की वीरता का पुरस्कार है या हमारी अंदरूनी कमजोरियों से रिसकर नासूर बन गया एक घाव ? जवाब हम पीड़ित भारतीयों को ही देना है | और मेरा मानना ये है कि यह सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी कायरता की हार है कि जेहादियों की बहादुरी भरी जीत | आतंकवाद को जड़ से समाप्त करना ही एक मात्र विकल्प है |
हम यह कैसे कर सकते हैं ? इसके लिए आप सभी के सुझाव सादर आमंत्रित हैं ..........कृपया मार्गदर्शन करें अगले पोस्ट में इस विषय पर चर्चा जारी रखूंगा |

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

margdarshan koun karega, sarkar hai nahi.
narayan narayan

Arvind Mishra said...

हाँ आतंकी अपने मकसद में सौ फीसदी कामयाब हुए हैं ! और अब बोनस भी हथिया रहे हैं .हमारे कुछ मित्र इस घड़ी में भी लिखास से पीड़ित अपने ढपली बजा रहे हैं तान छेड़ रहे हैं -पता नही क्या क्या साहित्य ठेले दे रहे हैं -आज कम से कम एक दिन हम मौन आक्रोश व्यक्त कर एक जुटता का परिचय दें ! हम एक हैं !

प्रवीण त्रिवेदी said...

" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर