Varun Kumar Jaiswal

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Sunday 4 January, 2009

भारत में विवाह की सबसे सामान्य शर्त क्या होती है ...???!!


कहते हैं कि विवाह सामाजिक रूप से एक समझौता होता है और व्यक्तिगत रूप से प्रेम के बंधन का सामाजिक स्वरुप | भारत में विवाह एक बहुत ही सम्मानजनक संविदा ( CONTRACT ) के रूप में मान्य है |

हर समझौते के लिए कुछ शर्तें आवश्यक होती हैं , फ़िर ये तो सिर्फ़ दो व्यक्तियों बल्कि बहुत हद तक दो परिवारों एवं एक हद तक पूरे समाज को प्रभावित करने वाला समझौता है |

भारत का सामाजिक स्वरुप एवं विवाह के प्रति दृष्टिकोण भी विश्व के बहुत सारे देशों से सिर्फ़ भिन्न है , बल्कि वैवाहिक रिश्तों कि परिणिति भी अलग प्रकार से व्यक्त होती है | ऐसे में संसार के बाकि हिस्सों में विवाह संबन्धी शर्तें अलग मान्यताओं पर आधारित हो सकती हैं |

मेरा यह प्रश्न है कि भारत में विवाह की सबसे प्रारंभिक एवं सामान्य शर्त कौन सी है ? जिसको पूर्ण करने या जिसके प्रति वचनबद्ध होने से विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है ?

कृपया मेरा मार्गदर्शन करें .......................................!!!!

" सत्यमेव जयते || "

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Saturday 3 January, 2009

नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं ...||


मेरी एक सहकर्मी है , साथ ही कंपनी तक हम एक ही कार में रोज़ाना आते जाते हैं | इस तरह कंपनी के अलावा तक़रीबन घंटे का हमारा साथ बना रहता है | कल अचानक ही हमारे बीच एक चर्चा उठी जिसने अंततः एक बहस का रूप ले लिया , परन्तु निष्कर्ष तो मुझे चौंकाने के साथ - साथ मन को निराशा के भाव भी दे गया |

हुआ कुछ यूं यह कि चर्चा उठी विश्व - भ्रमण की और ठहर गई भारत - भ्रमण पर | मेरी यह सहकर्मी हाल ही में अमेरिका के दौरे से लौट कर आई है | तो बहस के दौरान बात जब तक विश्व -भ्रमण तक थी तब तक मैं अमेरिका और यूरोप की खूबसूरती और जीवन शैली की उत्कृष्टता के व्यख्यान सुन रहा था लेकिन अचानक ही मैंने एक खता कर दी और पूछ बैठा कि " इंडिया में तुम्हारे पसंदीदा पर्यटन स्थल कौन हैं ? "| बस इतना सुनना था कि उसके मुहँ में जैसे बासी कढ़ी का स्वाद गया |

उसने कहा कि इंडिया भी कोई घूमने की जगह है हर जगह अव्यवस्था का बोलबाला है यहाँ पर , साथ ही उसने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने के बावजूद उसने महाराष्ट्र के मात्र चार शहरों को ही देखा है बाकि भारत में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है | मैंने तर्क करने की कोशिश की , " अरे अपने देश का भ्रमण करके ही हम इंडिया को ठीक से जान सकते हैं | " उसने एक बार में कह दिया " नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं |"
मैं अवाक् हो गया , आगे तर्क की हिम्मत जाती रही |

बाद में समय निकालकर मैंने कंपनी में करीब ९० ( वैसे कुल ३५०० सहकर्मी हैं पर वक्त के अभाव के कारण इसे जनमत सर्वेक्षण समझिये )साथियों को यह वाकया बताकर इस विषय पर राय जानने की कोशिश की | लोगों को छोड़कर बाकियों की राय थी ,
" नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं ...| "

यह पोस्ट लिखते - लिखते यह बात मष्तिस्क में घंटे की आवाज़ की तरह गूँज रही है .................................????


" सत्यमेव जयते || "
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Friday 2 January, 2009

क्या वाकई १ जनवरी विदेशी नववर्ष है ..?? सत्य की परख करें ||

मित्रों आज सुरेश चिपलूनकर जी का एक आलेख जिसका सार ' भारतीय परम्पराएं बनाम विदेशी नववर्ष ' , कहा जा सकता है , को पढ़कर मन में एक नई पीड़ा ने जन्म ले लिया | नववर्ष का प्रारम्भ ही विचलित कर गया |

सुरेश जी की भारतभक्ति पर तो कोई देशद्रोही ही प्रश्न कर सकता है | ऐसे में उनके विचारों से पूर्णतया सहमत ना होने के बाद भी नववर्ष के बारे में उनकी लेखनी ने आत्मा को काफी बेचैन कर दिया है | आख़िर किस हद तक हम विदेशी परम्पराओं की स्वीकार्यता को सह सकते हैं |

मुझे इस विषय का गहरा अद्ध्ययन नहीं है , फ़िर भी मेरा यह मानना है की सरलतम ही स्वीकृत हो सकता है |

तो आप मार्गदर्शन करें कि क्यों विदेशी परम्पराएं भारतीय उत्सवों पर भारी पड़ती जा रहीं हैं ? कैसे हम अपने सामाजिक संस्कारों का वजूद बचा कर रख पाएंगे ? अगर यही गति रही तो क्या एक दिन भारत के अपने पर्व और त्यौहार इतिहास की ही शोभा बनकर नहीं रह जायेंगे ? अपनी परम्पराओँ के सरलीकृत प्रचार - प्रसार का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्या हो सकता है ?

आप के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में .................................................................!

" नववर्ष मंगलमय हो | "

" सत्यमेव जयते || "
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Thursday 1 January, 2009

हमें चाहिए १००० धीरुभाई अम्बानी ..!! जरुरत है गुरु की ...||

१९ नवम्बर , सन् १९७२ भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति , स्व. वाराहगिरी वेंकटगिरी , दक्षिण अमेरिका के एक देश ब्राजील के दौरे पर होते हैं | उस दिन उन्हें ब्राजील के एक शहर सैल्वाडोर ( SALVADOR ) में एक विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह ( AUDITORIUM ) का उदघाटन करना था |

वहां के समारोह में श्री गिरी का परिचय उदघोषक ने कुछ इस प्रकार करवाया था |
" आज हमारे मुख्य अतिथि श्री वा. वे. गिरी ( राष्ट्रपति भारत देश ) जी हैं | आप सभी की जानकारी के लिए बता दें कि तीसरी दुनिया का एक प्राचीन देश भारत है जहाँ आज भी लाखों लोग गले में साँप लटकाए हुए नंगे घूमते हैं |भारत नदियों , पहाडों का वह देश है जिसमें अंधविश्वासों का बोलबाला है साधू एवं फ़कीर इस देश को चलाते हैं |महात्मा गाँधी नाम का व्यक्ति इस देश में हुआ था जिसने ब्रिटिश लोंगों से आज़ादी दिलाई थी | इनके देश में आज भी ५० % की जनसँख्या भूखी सोती है | यह देश विश्व बैंक के सबसे बड़े कर्ज़दार देशों में से है | "
( उपर्युक्त परिचय श्री गिरी के कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले आगंतुकों को सभा प्रारम्भ होने के ३० मिनट पूर्व दिया गया था | )

शायद आज हममें से कुछ लोग चौंक पड़ें , लेकिन तत्कालीन भारत की वही पहचान थी | अगर आज हमें भारत बदला हुआ दिखाई दे रहा है तो इसका श्रेय जाता है तीव्र औद्योगीकरण को , जिसके नायक थे स्व. धीरजलाल हीराचंद अम्बानी | स्वतंत्र भारत को अगर तेजी से विकास की रफ़्तार पर ले जाने का श्रेय किसी को जाता है तो वह व्यक्ति सिवाय धीरुभाई के कोई हो ही नहीं सकता | यह व्यक्ति ना सिर्फ़ भारत की औद्योगिक क्रांति का नायक बना बल्कि हर क्रांति के पुरोधा की तरह अपना सम्पूर्ण दर्शन भी हमारे सम्मुख छोड़ गया |

भारत अगर आज वाकई एक महाशक्ति बनना चाहता है तो हमें करोड़पतियों की एक ऐसी फौज चाहिए जो कि विकास चक्र को पर्याप्त मात्र में ईंधन उपलब्ध कराती रहे | आज की सृष्टि में तो इसका कोई विकल्प नहीं है |
जरा धीरुभाई के दर्शन को देखें कैसे वो हमें प्रेरित कर रहा है ?

धीरुभाई ने इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा सफल बनाया कि हर धन्धे का बाप पकडो कारोबार अपने आप बढेगा |मतलब कि श्रृंखला की प्रथम कड़ी से मुनाफा बनाकर तुंरत अगली कड़ी को व्यवसाय में जोड़ लो , रिलायंस का ही उदहारण लें तो सबसे पहले पोलिस्टर बेचना , फ़िर उसे बनाना , फ़िर उसके धागे का विनिर्माण , फ़िर धागे की जरुरत के केमिकल का निर्माण , फ़िर केमिकल के स्त्रोत पेट्रोलियम की रिफायनरी की क्रमबद्ध श्रृंखला ने रिलायंस को आज कहाँ पंहुचा दिया |

दूसरा सिद्धांत था कि देशहित में मौजूदा सड़े हुए व्यावसायिक विधान को मानने का कोई मतलब नहीं | अम्बानी के तीव्र विकास का ही प्रतिफल था कि १९९१ में भारत को नेहरूवादी अर्थव्यवस्था से मुक्ति मिली | ( संदेह हो तो नियमों मसलन ( MRTP ACT 1969 ) के बदलाव में रिलायंस की भूमिका देखें |

तीसरी बात थी कि कारोबार में जितना कमाओ सामने वाले को उससे ज्यादा दो | आज करोड़ शेयर धारकों में से जिसने भी साल से ज्यादा शेयर को रखा है उसे इस बात की सत्यता से कोई परहेज़ होगा |

अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात भारत के युवाओं को आत्मनिर्भरता का वो सपना देना जिससे विकास हमारी शर्तों पर हो कि किसी और देश से नौकरी और गुलामी आयात करके | इसी सपने ने ' देश का श्रम देश के लिए ' की भावना बढाई और अन्य व्यापारिक दिशाओं पर तेजी से बढ़ते हुए उद्यमियों को प्रोत्साहित भी किया |

आज भारत को यदि आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरना है तो हमें आज ऐसे गुरुओं की आवश्यकता है जो की १००० धीरुभाई देश के लिए तैयार कर सकें |

" सत्यमेव जयते " ||

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