Varun Kumar Jaiswal

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Saturday 3 January, 2009

नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं ...||


मेरी एक सहकर्मी है , साथ ही कंपनी तक हम एक ही कार में रोज़ाना आते जाते हैं | इस तरह कंपनी के अलावा तक़रीबन घंटे का हमारा साथ बना रहता है | कल अचानक ही हमारे बीच एक चर्चा उठी जिसने अंततः एक बहस का रूप ले लिया , परन्तु निष्कर्ष तो मुझे चौंकाने के साथ - साथ मन को निराशा के भाव भी दे गया |

हुआ कुछ यूं यह कि चर्चा उठी विश्व - भ्रमण की और ठहर गई भारत - भ्रमण पर | मेरी यह सहकर्मी हाल ही में अमेरिका के दौरे से लौट कर आई है | तो बहस के दौरान बात जब तक विश्व -भ्रमण तक थी तब तक मैं अमेरिका और यूरोप की खूबसूरती और जीवन शैली की उत्कृष्टता के व्यख्यान सुन रहा था लेकिन अचानक ही मैंने एक खता कर दी और पूछ बैठा कि " इंडिया में तुम्हारे पसंदीदा पर्यटन स्थल कौन हैं ? "| बस इतना सुनना था कि उसके मुहँ में जैसे बासी कढ़ी का स्वाद गया |

उसने कहा कि इंडिया भी कोई घूमने की जगह है हर जगह अव्यवस्था का बोलबाला है यहाँ पर , साथ ही उसने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने के बावजूद उसने महाराष्ट्र के मात्र चार शहरों को ही देखा है बाकि भारत में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है | मैंने तर्क करने की कोशिश की , " अरे अपने देश का भ्रमण करके ही हम इंडिया को ठीक से जान सकते हैं | " उसने एक बार में कह दिया " नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं |"
मैं अवाक् हो गया , आगे तर्क की हिम्मत जाती रही |

बाद में समय निकालकर मैंने कंपनी में करीब ९० ( वैसे कुल ३५०० सहकर्मी हैं पर वक्त के अभाव के कारण इसे जनमत सर्वेक्षण समझिये )साथियों को यह वाकया बताकर इस विषय पर राय जानने की कोशिश की | लोगों को छोड़कर बाकियों की राय थी ,
" नहीं जानना चाहते हम ' इंडिया ' को ....!! कुछ फायदा नहीं ...| "

यह पोस्ट लिखते - लिखते यह बात मष्तिस्क में घंटे की आवाज़ की तरह गूँज रही है .................................????


" सत्यमेव जयते || "

9 comments:

abhivyakti said...

apne desh ko to janna hi chahiye jo nahi chahte iska matlab wah apni jado se kate huye hain.

Himanshu Pandey said...

यह मनोवृत्ति उस मन की उपज है जिसने शीघ्रता की पैरोकारी में स्थायित्व भुला दिया है, जिसने नित्य को अस्वीकार कर अनित्य का हाथ थाम लिया है, या जिसने यांत्रिक सुघराई को जीवन की आत्यन्तिक सुघराई मान लेने की करुण भूल की है.
भारत का सौन्दर्य आप अपनी उस सहकर्मी को पूरा भारत-भ्रमण करा कर भी नहीं दिखा सकते. वह भी भारत घूमने आने वाले उन्हीं बहुसंख्यक लोगों की तरह भिखारियों का चित्र खींचकर भारत का चित्र अपने मन में टांक लेने वाली लगती हैं.
भारत को वही जान, समझ सकते हैं, जिनके पास मन हो- सब कुछ ग्रहण करने वाला मन, और जिनके पास आंखें हो-सौन्दर्य को पहचानने वाली.

मैं बार-बार भारत की बात कर रहा हूं, उसने हर बार ’इंडिया’ कहा. यदि उसे भारत केवल ’इंडिया’ दिखता है, तो ठीक ही है कि वह इसे न समझे, न जाने. हम भी तो यही कह रहे हैं- ’मैं भारत को जानना चाहता हूं, आत्मसात करना चाहता हूं-इंडिया को नहीं”

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ये तो बस ऐसा हो गया की मैं नहीं जानना चाहती की मुझे किस माँ ने जन्म दिया .विदेश यात्रा के बाद ..................
लोंग इसे शायद नए युग की नवीनता अपनाती सोच समझ सकते हैं ,पर मैं इसे उनके संकीर्ण विचार ही कहूँगी .दूसरे को जानने से पहले खुद को जानो तो सही ...................

hem pandey said...

आश्चर्य है कि कोई भारत में भ्रमण लायक दर्शनीय स्थलों को नकार सकता है.

राज भाटिय़ा said...

विदेशो मे रहने वाले खास कर अमेरिका ओर इग्लेण्ड मे रहने वाले, सभी नही फ़िर भी बहुत से लोग भुल जाते है कि हमारी पहचान सिर्फ़ ओर सिर्फ़ भारत ही है, जेसा भी क्यो ना हो है तो हमारा अपना,ओर ऎसे लोग विदेशो मै भी इन गोरो की ही चम्चा गिरी ही करते है,बहुत से लोग मुझे भी मिलते है, जो इस आप के सहयोगी की तरह ही सोचते है, ओर एक बात ऎसे लोग शायद विदेशो मै कम भारत मै ज्यादा मिलते है,

मुझे भारत मै हिन्दी बोलने वाले बहुत कम मिलते है,ओर युरोप मे आप को वो देश जिन कि मात्र भाषा अंग्रेजी है उन्हे छोड कर बाकी देशो मे अग्रेजी वोलने वाला कोई नही मिलेगा, जब की सब कई भाषा जानते है.
धन्यवाद

विनोद श्रीवास्तव said...

मैंने अमेरिका और यूरोप तो नही देखा लकिन गुजरात, आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर के चार राज्यों को छोड़ कर देश के हर राज्य में भ्रमण का अवसर मिला है. केरल के back waters, वेनिस की पानी की सड़कों को काफी पीछे छोड़ते हैं. इसका सबूत हाउस बोट की बालकनी से झांकती हजारों सैलानिओं के विस्मृत और संतुष्ट आंखों से झलकता है. बर्फ से ढकी हिमालय की वादियाँ, कल कल करती नदियाँ, हरे भरे लहलहाते मैदान, ऊंचे झरने, विविध वन्य जीवन, गोवा और केरल के सुनहरे रेत भरे समुद्र तट, प्राचीन मंदिरों के रहस्यमय सुगंध में नगाडों की धम धम,.........इतनी विविधता, इतनी समृधि किस देश को मिली है . इन्हे देखने समझने के लिए मन की आंखों की भी दरकार है जो संभवतः आपके सहकर्मी जी और उनके जैसे अन्य लोगों के पास नही है. हाँ ! यहाँ पश्चिम की उन्मुक्तता नही मिल पायेगी. इतने छुद्र विचार वाले लोगों के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करना समय की बर्बादी है.

विनोद श्रीवास्तव

K.P.Chauhan said...

hamare india jaisaa desh prthvi par to hai nahin anya grah ko maine dekhaa nahin .yadi india ki bhogolik istithi ,ki soundriytaa ,kashmir ki snow faaling sekeral ki nahron or nadiyoun ki chaal unme vichran karti nokaaye ,mousmon ki badalti chaale ,yahan ki sanskriti,etihasik dharoharen ,sabse prachin sabhaytaa,or bahut si baaten or sthal evm cheejen hai jinkaa avlokan karne par pataa chaltaa hai ki kitna bhavy hai meraa india or me to chahungaa ki meraa janm baar baar ho to kewal bharat me hi ho .

नीरज मुसाफ़िर said...

वरुण जी नमस्कार,
जो लोग भारत को कुछ नहीं मानते. उनसे बोलो कि अब तुम्हारे भारत में बिताये गए दिनों का 'THE END' हो गया है. आप बिना वीजा पासपोर्ट के हमारे देश में रहे हो, आपने जो भी यहाँ पर खाया पीया है, जो कुछ भी खोया पाया है, उसका हिसाब दो और चले जाओ वहां, जहाँ आपका मन लगता हो. हमारा देश तो सपेरो बंजारों का देश है, जब तक आप यहाँ रहोगे, आप भी इन्ही लोगों की श्रेणी में ही गिने जाओगे, इसलिए बेहतर है कि जितनी जल्दी हो सके, छोड़ दो इस देश को. कम से कम हमें तो चैन से रह लेने दो.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

दुखद.......................!!