Varun Kumar Jaiswal

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Wednesday 31 December, 2008

अहे ! निष्ठुर परिवर्तन तुम्हारा ही तांडव नर्तन !! कर सको तो करो मनन ||

समय की कभी रुकने वाली निर्बाध गति , हमारे सामने नववर्ष के रूप में अनेकानेक परिवर्तनों की साक्षी बनने को तैयार है | बस इतनी कामना है कि ,

जहाँ उल्लास हो ,
वहां संकल्प भी |

जहाँ कर्म हो ,
वहां मर्म भी |

जहाँ सृष्टि हो ,
वहां दृष्टि भी |

जहाँ कृत्य हो ,
वहां सत्य भी |

जहाँ गति हो ,
वहां मति भी |

जहाँ भक्ति हो ,
वहां शक्ति भी |

जहाँ सभ्यता हो ,
वहां नव्यता भी |

जहाँ विकार हो ,
वहां उपचार भी |

जहाँ विनाश हो ,
वहां सृजन भी |

आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं |

" सत्यमेव जयते " ||
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Tuesday 30 December, 2008

आने वाला पल जाने वाला है .....!!!! हो सके तो इसमें ....???


मित्रों एक बार फ़िर से एक नया वर्ष समय परिवर्तन श्रृंखला की अगली कड़ी लेकर हमारे सम्मुख प्रस्तुत है |वैसे तो बीते हुए लम्हों को हम कभी आसानी से भूल नहीं पाते , किंतु आज भूल ही जाएँ तो बेहतर है |

गुलज़ार के ये कालजयी शब्द " आने वाला पल जाने वाला है , हो सके तो इसमें जिन्दगी बिता लो पल जो ये जाने वाला है " , नववर्ष के प्रति हमारे कर्तव्यों को स्मरण कराते हैं | इतिहास चाहे कितना भी वैभवशाली हो , होता तो अतीत ही है |

अतः क्यों हम " बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि ले " की तर्ज पर नए जीवन को एक नई आशा एवं नेतृत्व के साथ शुभारम्भ करें |

आप सभी को नया वर्ष , नवजीवन की उत्कृष्टता , एवं अथ नूतन समग्रताओं की मेरी ओर से हार्दिक शुभेच्छाएं ||

" वर्ष नव , हर्ष नव , जीवन उत्कर्ष नव " ||

--- हरिवंश राय बच्चन |


" सत्यमेव जयते " ||
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Monday 29 December, 2008

क्या साहित्य हमारे जीवन को मात्र स्वप्नशील बनाता है ...???!! सुझाव दें ||


बचपन से पढ़ी अनगिनत रचनाओं एवं पुस्तकों ने मुझे बड़ा ही स्वप्नशील व्यक्ति बना दिया है | कुछ लोग कहते हैं कि किताबों ने तुम्हारा भेजा ख़राब कर दिया है | दुनिया की किसी भी समस्या पर मेरी राय किताबी मान ली जाती है , भले ही वह कितनी ही व्यवहारिक क्यों ना हो | अब साहित्य भी मुझसे प्रश्न कर रहा है कि मेरे लिए तुम्हारे श्रम का क्या औचित्य है ?

इस बात पर जिरह करते हुए साहित्य ने मुझे प्रश्नों की एक सूची पकड़ा दी | साहित्य ने उनका उत्तर माँगा है |

  • क्या साहित्य का प्रयोजन सिर्फ़ मनुष्य को संवेदनशील बनाना है ?
  • क्या साहित्य अपना व्यवसायीकरण करे तो उसे अपराधी समझा जाएगा ?
  • नई तकनीकों के इस युग में क्या साहित्य अपनी उपादेयता बरक़रार रख पायेगा ?
  • क्यों साहित्य की बागडोर आज कमजोर हाथों ने थाम ली है ?
  • क्या आज का जनमानस साहित्य से प्रभावित होकर निर्णय लेता है ?
  • क्या साहित्य अपनी सीमाओं में भाषा के अतिरिक्त अन्य विषयों को सम्मिलित करने को तैयार है ?
  • साहित्यकी को पेशा एवं पेशे को साहित्य की मान्यता क्या कभी मिल सकेगी ?
  • साहित्यकार स्वयं नेतृत्त्व को सामने क्यों नहीं आते ?
अब साहित्य के इन अतिप्रासंगिक प्रश्नों ने हमें अत्यन्त द्विविधा में डाल दिया है | बहुत प्रयासों के बाद भी उचित उत्तर की प्राप्ति नहीं हो पा रही है | कृपया मेरी सहायता करें , शायद स्वप्नशीलता का बोध विवेक से किए हुए श्रम की परिणिति साबित हो |

" सत्यमेव जयते " ||
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Sunday 28 December, 2008

क्या पुरूष स्त्री के मन को समझ सकता है ..??!! हाँ या नहीं ...!!


हमारे मन - मष्तिस्क में यह प्रश्न अनादिकाल से बार - बार प्रकट होता रहा है | हम पुरुषों में प्रायः इस बात पर चर्चा होती ही रहती है कि स्त्री का चरित्र कितना गहरा हो सकता है ?

पुरुषों की टोली , जहाँ यह चर्चा जारी रहती है अंततः सभी इस निष्कर्ष तक ( अधिकाँश समय ) पहुंचते हैं कि " स्त्री का मन और उसका चरित्र तो साक्षात् ईश्वर भी नहीं भाँप सकते तो हम क्या चीज़ हैं ? स्त्री का चरित्र तो त्रि-आयामी स्वरुप लिए होता है , कब कौन सी बात पर क्या रंग दिखलायेगा यह अनुमान लगाना ब्रम्हा के लिए भी कदाचित् दुष्कर कार्य है " |

चलो यह तो हुआ पुरूष प्रधान समाज के एक बड़े हिस्से का निर्णय लेकिन जहाँ तक मेरे जीवन के अनुभवों को मैं खंगालता हूँ तो यह बात सामने आती है कि मुझे व्यक्तिगत रूप से स्त्री के मन को समझने में कोई समस्या नहीं आती | मेरे लिए किसी भी स्त्री का मन उतना ही साफ़ है जितना कि हो सकता है | मेरे ख्याल से स्त्री को समझना बिल्कुल भी कठिन नहीं है , किंतु इसके लिए पुरूष को अपने अभिमान के दायरे से बाहर आना होगा | स्त्री को समझने का प्रयास इस जगत को नई आशाओं से भर देगा |

स्त्री के चरित्र को समझने के लिए संभवतः सबसे आवश्यक बात है पुरूष को स्त्री के गुणों जैसे ममता , दया और समर्पण के अनुरूप मानसिकता के स्तर को प्राप्त करना होगा | आज तक पुरूष ने कभी इस स्तर तक जाने का प्रयास सामाजिक रूप से नहीं किया इसीलिए आज भी समाज को " ढोल गंवार शूद्र पशु नारि , सकल ताड़न के अधिकारी |" जैसी मानसिकता ने अपनी चपेट में ले रखा है | अब वो समय गया है कि पुरूष अपने स्त्रैण गुणों को जागृत करे और ईश्वर कि इस सर्वश्रेष्ठ रचना से अपने साहचर्य को आनंद की पराकाष्ठा तक ले कर जाए |

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में प्रश्न किया था कि " ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन है ? स्त्री या पुरूष |" ||
इसके उत्तर में ढेरों नपी - तुली टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं | मित्रों इतिहास में इस प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार से दर्ज है |

प्रत्येक धर्म के अनुसार ईश्वर ने सर्वप्रथम पुरूष को बनाया | ईश्वर भी इस बात को स्वीकार करते हैं | वस्तुतः पुरूष के निर्माण के बाद ईश्वर ने अपनी इस महान रचना को हर कसौटी पर परखा , उसे इस महान धरती पर भेजा | बहुत सी परीक्षाएं भी लीं और अंततः यह विचार किया कि ,

" मैं इससे भी अच्छा बना सकता हूँ | "

" फ़िर ईश्वर ने स्त्री बनाई | "

" सत्यमेव जयते " ||





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Saturday 27 December, 2008

यदि परमाणु हमला करे पाकिस्तान, तो हम कितने तैयार हैं ..???!!! चर्चा करें ||

आजकल चारों ओर युद्ध की आभाषीय चर्चाओं का माहौल काफी गर्म है | भारत और पाकिस्तान दोनों के नीति - निर्धारक अपनी सेनाओं को किसी भी लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार बता रहे हैं | आज की तारीख में दोनों ही देश जनसंहारक परमाणु हथियारों से सिर्फ़ लैस हैं वरन् एक दूसरे को इन आयुधों से नष्ट कर पाने की क्षमता भी कमोबेश जुटा ही ली है | देश का एक अतिउत्साही वर्ग इस संभावित परमाणु युद्ध के लिए पूरी जनता को तैयार मानने का दावा भी कर रहा है | तो ऐसे में क्या समझा जाए कि भारत जनसंहार में बदल जाने वाले इस युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार है |

किसी भी सूरत में पहला वार देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक रीढ़ मुंबई को झेलना होगा , तो क्या इन महानगरों में आपातकालीन उपाय मसलन १० लाख से ज्यादा बिस्तरों के अस्थाई अस्पतालों का निर्माण , कम से कम लाख युद्ध स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण एवं तैनाती , किसी भी दशा में सरकारों को अस्थाई रूप से बचाने एवं निर्णय समिति को अधिकारों का हस्तांतरण , जैविक एवं रासायनिक प्रतिरोधक उपाय , जीवन रक्षक प्रणाली , खाद्य एवं प्रतिरक्षक दवाएं एवं रसद इत्यादि की सारी तैयारी पूरी हो गई है ? क्या हम सभी ने युद्ध की सम्भावना को देखते हुए कम से कम आने वाले महीनों के लिए आवश्यक नगदी , जीवन सहायक रसद , दवाएं , राशन , वैकल्पिक संचार , युद्ध के बाद की जबरदस्त मंदी , संभावित हमलों के स्थानों पर रहने वाले रिश्तेदारों एवं नागरिकों की शरण व्यवस्था , विस्थापन इत्यादि की सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं ?

मैं तो व्यक्तिगत रूप से इसके लिए तैयारी कर रहा हूँ लेकिन पूरे देश की तैयारियों के बारे में तो मुझे व्यापक संदेह है | आख़िर जिस देश के राजनेता १० हथियारबंद हमलावरों से मुंबई जैसे नगर को नहीं बचा पाये वो क्या किसी जनसंहारक युद्ध की विभीषिका को झेलने के लिए जनता को तैयार कर पायेंगे ?

यदि देश की जनता को तैयारियों पर पूरा भरोसा है तो समझिये कि हम युद्ध के लिए तैयार हैं |
और यदि नहीं तो हम सब का राम नाम सत्य ही समझिये , या फ़िर यह युद्ध राग गाना बंद करिए |


अब आप अपनी राय से बताइए कि आप व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से इस युद्ध के लिए कितने तैयार हैं ??

" सत्यमेव जयते " ||
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Friday 26 December, 2008

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन है ? स्त्री या पुरूष !!! मार्गदर्शन करें ||


आज जब मैं मित्रों के साथ कंपनी के कैंटीन में बैठा था , तो अनायास ही ये चर्चा निकल पड़ी कि धरती पर सर्वश्रेष्ठ मानव है , किंतु धरती की परवरिश ने इन दोनों (स्त्री एवं पुरूष ) में से किसे ज्यादा परिष्कृत किया है |
ये प्रश्न शायद बेतुका लगे किंतु एक गूढ़ अर्थ में इसका हमारे मनोविज्ञान पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है | शायद उत्तर में ही क्रांति के बीज छुपें हों |
कैंटीन की चर्चा में सखाओं एवं सखियों में ज़बरदस्त शास्त्रार्थ हुआ किंतु निष्कर्ष नहीं निकल सका |
मित्रों कृपया मेरे इस असमंजस को दूर करने का तर्कसंगत सहयोग करें | अपनी टिप्पणियों के माध्यम से आप
मेरा मार्गदर्शन अवश्य करें |
धन्यवाद |

" सत्यमेव जयते "||

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