बचपन से पढ़ी अनगिनत रचनाओं एवं पुस्तकों ने मुझे बड़ा ही स्वप्नशील व्यक्ति बना दिया है | कुछ लोग कहते हैं कि किताबों ने तुम्हारा भेजा ख़राब कर दिया है | दुनिया की किसी भी समस्या पर मेरी राय किताबी मान ली जाती है , भले ही वह कितनी ही व्यवहारिक क्यों ना हो | अब साहित्य भी मुझसे प्रश्न कर रहा है कि मेरे लिए तुम्हारे श्रम का क्या औचित्य है ?
इस बात पर जिरह करते हुए साहित्य ने मुझे प्रश्नों की एक सूची पकड़ा दी | साहित्य ने उनका उत्तर माँगा है |
- क्या साहित्य का प्रयोजन सिर्फ़ मनुष्य को संवेदनशील बनाना है ?
- क्या साहित्य अपना व्यवसायीकरण करे तो उसे अपराधी समझा जाएगा ?
- नई तकनीकों के इस युग में क्या साहित्य अपनी उपादेयता बरक़रार रख पायेगा ?
- क्यों साहित्य की बागडोर आज कमजोर हाथों ने थाम ली है ?
- क्या आज का जनमानस साहित्य से प्रभावित होकर निर्णय लेता है ?
- क्या साहित्य अपनी सीमाओं में भाषा के अतिरिक्त अन्य विषयों को सम्मिलित करने को तैयार है ?
- साहित्यकी को पेशा एवं पेशे को साहित्य की मान्यता क्या कभी मिल सकेगी ?
- साहित्यकार स्वयं नेतृत्त्व को सामने क्यों नहीं आते ?
" सत्यमेव जयते " ||
8 comments:
भई मान गए हो तुम हो एक परिपक्व युवा और तुम्हारी ये प्रश्नावली ईस्टाईल भी पसंद आयी ? साहित्य तो कालजयी है पर साहित्य क्या है ? पहले इसे स्पष्ट करो ?
वरुण जी, ये चीजें बाद में.
पहले नए साल की शुभकामनाएं.
इसे तो आप जेसी युवादृ्श्टि ही सही बता सक्ती है जो साहित्य के सागार मे डूबने क शक्ती रखती है भई हम अल्पग्य तो आपको आशीर्वाद व नव वर्ष की शुभ कामनायें दे सकते है नव वर्ष मंगलमय हो
भाई बहुत अच्छा लिखा आप ने
धन्यवाद
साहित्य से जुडे ये तमाम सवाल हर व्यक्ति की नजर में अलग अलग उत्तर रखते हैं। और मेरी नजर में साहित्य अपने पाठकों को कहीं न कहीं प्रभावित तो करता ही है, मनुष्य की संवेदनाओं को जगाने में, उन्हें विचारशील बनाने में उसकी बहुत बडी भूमिका है।
इस सम्बन्ध में मेरे विचार :
१ - नहीं
२- नहीं
३- हाँ
४- (अ) पहले के साहित्यकार पूर्णतः नहीं तो काफी कुछ स्वान्त: सुखाय लिखते थे, आज के नहीं. (ब) प्रतिभा कभी कभार हे पैदा होती है.
५- पूरी तरह नहीं ,लेकिन जिस प्रकार का साहित्य पढा जायेगा उस का कुछ न कुछ असर पड़ता ही है.
६- हाँ
७- साहित्य - रचना पेशा हो सकता है लेकिन 'पेशे को साहित्य की मान्यता'- मैं नहीं समझ पाया.
bahut he acchi lekhan shaili hai aapki..varun jee mere hisaab se to aap shaahitya ko jaise chaahe waise le sakte hain...ye aapke upar depend karta hai...jayada details main nahi jaaunga...
chaliye nav warsh ki aapko haardhik subhkaamnaaye
Sahitya vicharon ki anubhuti evm abhiyakti hai jo manushya ki sargarbhita ko pradarshit karti hai manushya ke aachran ka prtibimb hai ,sahitya hi sirjanhar hai
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