Varun Kumar Jaiswal

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Sunday 28 December, 2008

क्या पुरूष स्त्री के मन को समझ सकता है ..??!! हाँ या नहीं ...!!


हमारे मन - मष्तिस्क में यह प्रश्न अनादिकाल से बार - बार प्रकट होता रहा है | हम पुरुषों में प्रायः इस बात पर चर्चा होती ही रहती है कि स्त्री का चरित्र कितना गहरा हो सकता है ?

पुरुषों की टोली , जहाँ यह चर्चा जारी रहती है अंततः सभी इस निष्कर्ष तक ( अधिकाँश समय ) पहुंचते हैं कि " स्त्री का मन और उसका चरित्र तो साक्षात् ईश्वर भी नहीं भाँप सकते तो हम क्या चीज़ हैं ? स्त्री का चरित्र तो त्रि-आयामी स्वरुप लिए होता है , कब कौन सी बात पर क्या रंग दिखलायेगा यह अनुमान लगाना ब्रम्हा के लिए भी कदाचित् दुष्कर कार्य है " |

चलो यह तो हुआ पुरूष प्रधान समाज के एक बड़े हिस्से का निर्णय लेकिन जहाँ तक मेरे जीवन के अनुभवों को मैं खंगालता हूँ तो यह बात सामने आती है कि मुझे व्यक्तिगत रूप से स्त्री के मन को समझने में कोई समस्या नहीं आती | मेरे लिए किसी भी स्त्री का मन उतना ही साफ़ है जितना कि हो सकता है | मेरे ख्याल से स्त्री को समझना बिल्कुल भी कठिन नहीं है , किंतु इसके लिए पुरूष को अपने अभिमान के दायरे से बाहर आना होगा | स्त्री को समझने का प्रयास इस जगत को नई आशाओं से भर देगा |

स्त्री के चरित्र को समझने के लिए संभवतः सबसे आवश्यक बात है पुरूष को स्त्री के गुणों जैसे ममता , दया और समर्पण के अनुरूप मानसिकता के स्तर को प्राप्त करना होगा | आज तक पुरूष ने कभी इस स्तर तक जाने का प्रयास सामाजिक रूप से नहीं किया इसीलिए आज भी समाज को " ढोल गंवार शूद्र पशु नारि , सकल ताड़न के अधिकारी |" जैसी मानसिकता ने अपनी चपेट में ले रखा है | अब वो समय गया है कि पुरूष अपने स्त्रैण गुणों को जागृत करे और ईश्वर कि इस सर्वश्रेष्ठ रचना से अपने साहचर्य को आनंद की पराकाष्ठा तक ले कर जाए |

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में प्रश्न किया था कि " ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन है ? स्त्री या पुरूष |" ||
इसके उत्तर में ढेरों नपी - तुली टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं | मित्रों इतिहास में इस प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार से दर्ज है |

प्रत्येक धर्म के अनुसार ईश्वर ने सर्वप्रथम पुरूष को बनाया | ईश्वर भी इस बात को स्वीकार करते हैं | वस्तुतः पुरूष के निर्माण के बाद ईश्वर ने अपनी इस महान रचना को हर कसौटी पर परखा , उसे इस महान धरती पर भेजा | बहुत सी परीक्षाएं भी लीं और अंततः यह विचार किया कि ,

" मैं इससे भी अच्छा बना सकता हूँ | "

" फ़िर ईश्वर ने स्त्री बनाई | "

" सत्यमेव जयते " ||





12 comments:

Arvind Mishra said...

भैया या बहना (?) जब आपको इतना ज्ञान इतने निश्चयात्मक रूप से पहले से ज्ञात ही है तब आपने क्यों हमारा समय जाया किया ? अपुन तो समझे थे बिचारे भोले भाले को मार्गनिर्देश की जरूरत आन पडी है पर आपतो पूरे चंट निकले ! नमस्कार और साधुवाद ! लिख अच्छा लग रहे हैं पर कुछ प्रायोजित सा लग रहा है !

निर्मला कपिला said...

nahi magar apvaad to her jagah hain,apne theek likha hai k vo apne abhimaan ko chhore bina istri ko nahi samajh sakta.--kyaa kya ja sakta hai abhimaan to uska janam sidh adhikaar hai

Alpana Verma said...

आप ने अपने प्रश्न का ,ख़ुद ही लिखा है उत्तर..
पुरूष अगर अपने अहम् को त्याग कर स्त्री के मन को समझ सके तो कोई मुश्किल नही,
वैसे कहती हैं ,स्त्री के मन को तो ब्रह्मा भी नहीं समझ सके.
-बहुत कम स्त्रियाँ होती हैं जो ख़ुद यह जानती हैं या तय कर पाती हैं की उन्हें जीवन में क्या चाहिये..
-सवाल यह है कि क्या हर पुरूष का स्वभाव इतना सरल होताहै कि उसे हर कोई आसानी से समझ सके ?
नहीं न--??
इस लिए मैं समझती हूँ यह generalise करना सही नहीं कि स्त्रियों को समझना मुश्किल है और पुरुषों को समझना आसान.
हर केस में अलग अलग राय हो सकती है.[ख़ास कर आज के जमाने में]

नीरज मुसाफ़िर said...

गुड मोर्निंग जी,
ये क्या आपने पुरुष-स्त्री लगा रखा है. यार एक बात गाँठ बाँध लो- स्त्री और पुरुष कोई एक दूसरे के प्रतियोगी नहीं हैं, बल्कि पूरक हैं एक दूसरे के. एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
यार अगर तुम्हारे पास पोस्ट लिखने को कोई ढंग का टोपिक ही नहीं है, तो मेरी तरह मुसफिरगर्दी करना शुरू कर दो.

सुजाता said...

आप प्रायोजित सत्य की बात कर रहे हैं। उम्मीद करती हूँ कि आप प्रयोजन जानते हैं।
।मनुष्य जिस समाज मे रहता
है वहाँ उसके समाजीकरण की सामान्य प्रक्रिया है कि वयस्क होने तक वह घर,स्कूल,परिवेश,इतिहास,संस्क्रति से सब कुछ ग्रहण करता है जितना और जैसा उसे मिलता है ..इसके बाद का विकास क्रम यह है कि वह परिपक्व और वयस्क होने पर उन सभी गृहीत बातों पर प्राप्त अनालिटिकल शक्तियों द्वारा चिंतन मनन करता है और आगे के जीवन के लिए दिशाएँ,लक्ष्य और राह तय करता है।जो व्यक्ति इस विश्लेषण की प्रक्रिया से गुज़रे बिना केवल प्राप्त तथ्यों,सत्यों,मतों,विचारों के आधार पर जीता चला जाता है वह जड़ है।
सो अब आप अपनी विश्लेषण प्रक्रिया ,विचार प्रक्रिया का इस्तेमाल दी गयी, प्राप्त हुई संरचनाओं से निष्पक्ष होकर करें तो सत्य हासिल होगा।
सच मानिए जो कहता है कि सच मुझे मालूम है उसे केवल भ्रांति है।
अल्पना जी से भी सहमत हूँ।

Unknown said...

bahut sahi charcha ho rahi hai yahan...kaafi accha likhe hain..waise main alpna jee ke baat se sehmat hun...kehte hain na..

त्रिया चरित्रं पुरुसस्य भाग्यम ,
देवो न जानती कुतो मनुष्यम |

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिस दिन पुरुष स्त्री को समझ लेगा उस दिन समस्या का हल ही हो जाना है।

surendra said...

बहुत अच्छा लिखा है, मेरे विचार से स्त्री एक साथ कई चरित्रों को जीती है, जो उसी की छमता है, इसलिए पुरुष तो क्या विधाता भी उसे ठीक से समझ नहीं पाया, परन्तु आप समझ गए यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है

शोभा said...

वाह बहुत अच्छा लिखा है।

राज भाटिय़ा said...

भाई क्या आप किसी पुरुष के मन की बात समझ सकते है???
दुसरी स्त्रियो के मन की बात तो नही लेकिन अपनी बीबी, मां ओर बहन के मन की बात बिना इन के बोले समझ जाता हूं चाहे उन से कितना भी दुर क्यो ना होऊ.
धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

दोनो कॉम्प्लीमेण्ट्री जीव हैं। कम या ज्यादा या बेहतर की बात झगड़ा उत्पादक है! :-)

K.P.Chauhan said...

istri ke mun main kyaa hai uskaa charitra kyaa hai,kyaa purush istri ke mun ko samajh saktaa hai ,ye swaal anadi kaal se hamaare smaaj mai uthte rahte hain or ye sawaal wo purush varg uthaa rahaa hai jo aaj tak apne swyam ke charitra ko NAA HI to samajh sakaa hai or naa hi bachaa kar rakh saktaa hai jab ki wo prityek purush ki maa,bahan,baiti,or patni bankar srajanhaari,nishchhal prem ,adbhut vatsalyaa,tyagmayi ,purushiya charitra ki rakshak bankar apnaa pyaar undel rahi hai .itnaa hone ke bad bhi yadi ham uske mun ko na samajh sake to ye istri varg ke prati anyaay hai .

to samajh sakaa hai or naa hi usko istri ki bhanti sanjo kar rakh saktaa hai