Varun Kumar Jaiswal

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Tuesday 2 December, 2008

आतंकवाद पर निर्णायक प्रहार का वक्त........आंतरिक सुरक्षा ....भाग- ५


कल टीवी पर बराक ओबामा का बयान सुना कि भारत को यदि लश्कर और अलकायदा के ठिकाने पाकिस्तान में होने की जानकारी है तो इकतरफा कार्यवाही कर देनी चाहिए | बराक ओबामा का ये कथन शायद अमेरिकी होनें की बानगी भर है | आज हमारी स्थिति इतनी कमजोर हो गई है कि हम देश की आंतरिक सुरक्षा को ही दाँव पर लगा बैठे हैं | सबसे पहले हमें अपनी आंतरिक सुरक्षा को एक ऐसी मजबूत स्थिति में पहुँचाना होगा कि हमारी अपनी सीमाओं में कोई परिंदा भी पर मार सके |
आज असोम में एक और बोम्ब विस्फोट की घटना हो गई , मुंबई हमलों के एक सप्ताह के भीतर ही ये घटना आतंकियों के बढे हुए हौसले बयान करती है | भारत सरकार ने पिछले पाँच सालों के दौरान आंतरिक सुरक्षा को धता बताने में कोई कसार बाकी रख नही छोड़ी है | एक अनुमान के मुताबिक अब भारतीय सीमा के अन्दर से ही आतंकियों को मदद पहुँचाने का सारा तंत्र विकसित किया जा चुका है | इसके खात्मे के लिए निम्न उपायों को काम में लाया जा सकता है |

. सबसे पहले भारत को अवैध आव्रजन के खिलाफ अत्यधिक कठोर क़ानून बनाना पड़ेगा | इस क़ानून की आड़ में बंग्लादेशिओं की चरणबद्ध तरीके से पहचान कर उनकी वापसी सुनिश्चित की जाए |

. भारत में आतंकवाद निरोधक कानून को इतना सख्त बनाया जाए कि सुरक्षा एजेंसियों एवं बलों को कार्यवाही करने का मौका मिल सके |

. भारत कि समुद्री सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए तटरक्षकों एवं समुद्री नौसेना को पर्याप्त अधिकार दिए जाए |

. भारत में गिरफ्तार आतंकियों के साथ इतनी कठोर कार्यवाही करनी चाहिए कि आतंकियों कि रूह तक काँप उठे |

. आतंक की नर्सरियों पर तुंरत ही रोक लगाई जाए और इस प्रकार का साहित्य छापने वालों को कठोर कानूनों से दण्डित किया जाए |

. आतंकियों के धन स्त्रोत सुखाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए |

हमें पहले अपनी अन्दुरूनी रुकावटों को नेस्तनाबूत करना होगा तब जाकर हम बाहरी ताकतों के खिलाफ लड़ने की सोच भी सकते हैं | आतंक के खिला अपनी जमीं पर लड़ाई सिर्फ़ हमें जीत से दूर करेगी अतः हमें इसे खींच कर दुश्मन के तम्बू तक ही ले जाना होगा |
" सत्यमेव जयते "

6 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kyon congress apne sabhi pratyashiyon ki jamanat jabt karane lagi

कुश said...

एक पॉइंट आपसे छूट गया था..

आतंकियो को भला बुरा कहे जाने पर मुसलमानो का अपमान नही समझा जाए..

दिवाकर प्रताप सिंह said...

सही लिखा है आपने

Shastri JC Philip said...

प्रिय वरुण, आज इस लेखन परम्परा के सारे लेख पढ गया. काफी व्यवस्थित तरीके से लिखा है. मैं तुम्हारे साथ हूँ.

हां एक बात -- कानून कडे करने से हल नहीं होगा. अभी भी वे काफी कडे हैं. असल समस्या कानून की नहीं बल्कि नेताओं की है जो हर आतंकवादी को बचाने के लिये आ जाते हैं.

राजनैतिक संरक्षण खतम हो जाये तो बहुत फरक पड जायगा!

लिखते रहो !!

सस्नेह -- शास्त्री

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

वरुण जी,मेरे जैसे ब्लागिंग जगत के कलंक के आपके श्वेत धवल उज्ज्वल ब्लाग पर आ जाने से आपको ब्लाग पर गंगाजल छिड़कना होगा वरना अपवित्रता का बोध होता रहेगा। आतंकवाद के खिलाफ़ कठोर से कठोर कार्यवाही करने की सलाह दे रहे हैं पर ये वाद उपजा क्यों है उसे जानने की जहमत आप जैसे स्वयंभू बुद्धिजीवी नहीं उठाएंगे। उसकी आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि आप मानते हैं कि कुछ लोग(शायद मेरे जैसे) जन्मजात अपराधी और आतंकी होते हैं। आपको शुभ्रता मुबारक मैं कलंक होने में गर्व महसूस करता हूं। आप आतंकी इंसानो को फ़ांसी दीजिये मैं उनके दर्द को जानने की कोशिश करता हूं। आप अपने व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं कि सम्मुख मिलन से ही जानना श्रेयस्कर है तो यदि कभी पूना आया तो आपके चरणस्पर्श करने अवश्य आउंगा,यदि आप कभी पनवेल आएं तो सूचित करें चरणरज लेने आ जाउंगा। आप जैसे लोग ही तो इंसानियत की जरूरत हैं हमारे जैसे कलंकी कीड़े तो आप समाप्त ही कर दें तो बेहतर समाज बन सकेगा आपके जैसे लोगों से.....
सादर
डा.रूपेश श्रीवास्तव

Varun Kumar Jaiswal said...

डॉ रुपेश श्रीवास्तव जी ,
मैं ब्लॉग की दुनिया में आपके नियमित पाठकों में से एक हूँ |
हमेशा मैंने आपके विचारों से अवगत होते रहने का यथासंभव
प्रयास किया है , मुझे आपके विचारों में जो आग और जानकारी दिखती है वो
हर किसी के बस की बात नही है , किंतु हिन्दी ब्लॉग की
दुनिया में मुझे आपकी भाषा पर ही आपत्ति हुई | चूँकि आपके
नाम में ' डॉ ' शब्द का उपयोग हुआ है इसलिए मन दो मिनट के विक्षुब्ध हो गया , मैं कोई बुद्धिजीवी नहीं किंतु बुद्धि को जीता जरूर हूँ |
आपकी रचना पर भाषा के लिए लिखी गई टिप्पणी के लिए मुझे कोई अफ़सोस नहीं है |
हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया अभी शुरू ही हुई है | कृपया अश्लील शब्दावली का प्रयोग करने की बजाय रचनात्मकता पर ध्यान दे | मेरा मंतव्य अगर आपको गाली देना ही होता तो मैंने अपनी पहचान कभी न छुपाई होती |
सादर ...............