Varun Kumar Jaiswal

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Wednesday 3 December, 2008

क्या वाकई पाकिस्तान से युद्ध ही अन्तिम विकल्प है .....?.......

हम भारतीय लोग बहुत ही युद्धप्रिय लोग हैं खासकर ब्लोगिंग की दुनिया में सक्रीय लोगों का तो कहना ही क्या ,आजकल मीडिया भी युद्ध जैसे टॉपिक को लेकर अपनी अतिसक्रियता को जाहिर कर रहा है | कई जगह से आर-पार की लड़ाई और कई जगह से सीमित सैन्य कार्यवाही की बातें सामने रही हैं | कुछ लोग युद्ध की आभाषीय तैयारियों में व्यस्त भी हो गए हैं | रोजाना कितने ही नेताओं , पत्रकारों , ब्लागरों , बुद्धिजीविओं , अभिनेताओं इत्यादि ने अपने साधारण से साधारण वक्तव्यों को भी वीर रस से भरपूर भाषण में बदल डाला है |जो बोलते हैं उनकी छवि हाई प्रोफाइल बन जाती है और जो नहीं बोलते उनको भी युद्ध आदि विषयों का गंभीर जानकार मान लिया जाता है आख़िर पहले तो बोलते ही होंगे , इसीलिए |अब बात मूल मुद्दे की, क्या आज की तारीख में पकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई करना और उसे नानी याद दिला देना ही एकमात्र विकल्प है ? उत्साही भारतीय हमेशा हाँ कहने को तैयार हैं | जो लोग युद्ध के विकल्पों की बात कर रहे हैं उनको भुनगा समझा जा रहा है | एक बात तो बिल्कुल साफ़ है कि उन्माद जब बेकाबू हो जाए तो यह युद्ध को जन्म देता है | ऐसा कोई भी उन्माद लोगों को कुछ समय के लिए एक कर देने के लिए काफ़ी होता है | आज की तारीख में सिर्फ़ भारत ही बल्कि पाकिस्तान की जनता भी एक हो गयी है ( भारत के खिलाफ मुकाबले हेतु ) |जो पाकिस्तानी अभी तक बलूच , सिन्धी , पञ्जाबी , पश्तून , कट्टरपंथी , उदारवादी इत्यादि खेमों में बँटे हुए थे , अचानक ही हिन्दुस्तानियों की खिलाफत के लिए एकजुट हुए जा रहे हैं | हाल ही में इस्लामाबाद में हुई रैलीओं में इनकी बानगी भर देखी जा सकती है जिनमे खुले आम भारत और अमेरिका के झंडे जलाये जा रहे हैं | पाकिस्तानी फौजों ने अब धीरे-धीरे अलकायदा से भारत के खिलाफ मोर्चा खुलने की स्थिति में मिलकर जेहादी लड़ाई में शामिल का भी समझौता कर लिया है | अब तो पाकिस्तानी हुक्मरान भी जंग की जबान बोल रहे हैं | हम सभी यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान की यह हिम्मत परमाणु ब्लैकमेलिंग की वजह से है जो कि इस मुद्दे पर भारतीयों को मुख्यतया तीन भागों में बाँटती है | पहले जो कि युद्ध के पक्ष में हैं दूसरे जो कि खिलाफ हैं और तीसरा पक्ष जो कि सीमित सैन्य कार्यवाही चाहता है |
आज की तारीख में युद्ध कोई विकल्प हो ही नहीं सकता | तो पूर्ण युद्ध और ही कोई सीमित सैन्य कार्यवाही ही करना कोई कारगर विकल्प साबित हो सकती है | आज हम किसी भी प्रकार की तैयारियों के लिहाज से लड़ाई के लिए खरे नहीं हैं और यदि किसी वजह से पूर्ण विजय नहीं मिली तो परिस्थितियाँ आज से भी बदतर हो जायेंगी |कल्पना कीजिये कि आज की तारीख में जो पाकिस्तान हमसे नफरत करता है किसी भी हार की सूरत में क्या वो परमाणु हमले से बाज़ आएगा ? जो भारत १० जेहादियों के सामने ६० घंटों तक पंगु व्यवस्था का प्रतीक बना रहा वो क्या किसी भी संभावित हमले का सामना करने के लिए तैयार है ? जवाब है नहीं, राजनैतिक रूप से नाकारा तंत्र की खामियों को आप युद्ध करके सुधार नहीं सकते हैं | पिछले युद्धों को ध्यान से देखा जाए तो नतीजे हमारे लिहाज़ से तो सिफ़र ही कहे जा सकते हैं | उन लडाइयों की बदौलत भारत कौन सी विश्व शक्ति बन गया था ?
राजनैतिक नेतृत्व कमजोर होने के कारण शासकीय दलों ने भारत की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने की बजाय वोट बैंक की राजनीति पर ज्यादा ध्यान दिया है | अब जबकि जेहादियों ने वो खोखलापन उजागर कर दिया तो युद्ध की बात करके उसे छुपाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है | ये लोग कहते हैं कि अमेरिका को देखो कि कैसे उसने इन चूहों को उनके ही बिलों में सर छुपाने को मजबूर कर दिया है | ऐसे लोग ये भूल जाते हैं कि ज़ज्बात और जमीनी हकीकत दोनों ही अलग पहलु हैं | जॉर्ज बुश के अमेरिका ने पिछले वर्ष युद्ध में बिताये हैं |हम सभी के सामने यह नीती पूरी तरीके से सही नहीं रही है | आप कह सकते हैं कि आज अगर अमेरिका पर दोबारा कोई हमला हो सका तो उसका कारण उसकी युद्ध नीती होकर कड़ी आंतरिक सुरक्षा नीती है | अमेरिका ने आतंकियों पर दोहरा वार किया | खुले युद्ध ने उनको एक तरफ़ बचाव के लिए और दूसरी ओर मजबूत अमेरिकी सुरक्षा कवच ने उनको हमला करने का मौका ही नहीं दिया | अब हमें भी पहले अपने लिए ऐसे कवच का निर्माण करना है जो कि अभेद हो |
मजबूत सुरक्षा के लिए लगातार राष्ट्र निर्माण के पथ पर अग्रसर होना होगा | बीजिंग ओलंपिक में चीन ने दुनिया को दिखाया कि वो पिछले दशक में अपनी आंतरिक मजबूती से निर्णय लेकर कैसे तीव्र विकास के लक्ष्यों को हासिल कर पाया , वहीं अमेरिका ने सिर्फ़ युद्धों में फंसकर स्वयं को आर्थिक मंदी में धँसने दिया | ओबामा ने चुनाव को , युद्ध का विरोध करके राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ जीता है | जबकि हमारा राजनेता युद्ध को जायज ठहराने पर तुला हुआ है |
क्या कभी हम अमेरिकी लोगों से इतनी परिपक्वता सीख पायेंगे ? अगर अब भी हमने ख़ुद को सुधारने की पहल नहीं की तो शायद अब तो जो कुछ भी कमाया है वो गवां बैठें |

" सत्यमेव जयते " |





5 comments:

Anil Kumar said...

मैं आपसे सहमत हूं. युद्ध हुआ तो पिछले ३० साल की सारी उपलब्धियां खो देगा भारत. याद रहे कि पाकिस्तान का ध्यान रखने वाले पूरब-पश्चिम में बहुत हैं - उसका कुछ नहीं बिगडने वाला. भलाई इसी में है कि पहले अपने आप को मजबूत किया जाये. जब तक सूरज चांद रहेगा, पाकिस्तान आतंकवाद करेगा. लडाई के मौके तो बाद में भी आते रहेंगे.

BrijmohanShrivastava said...

jab tak dakiyanoosee log hain aur yava peedee aage nahin aatee tab tak to dikkt rahegee hee

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

मित्र वरुण बहुत ही खूबसूरती से तुमने युद्ध न करने की बात कह दी है. मैं हमेशा ही शान्ति का पक्षधर रहा हूँ.
अटल जी की पहल मेरे लिए खुशी लाने वाली थी. मेरा हमेशा ही यही सोचना रहा है कि समर्थ पाकिस्तान हमेशा ही भारत के हित में होगा.
हो सकता है कि मैं सही रहा होऊँ पर अब मैं ख़ुद के ही विपरीत हो चुका हूँ. सिर्फ़ मुंबई पर हमले से नहीं.
ये जो रह-रह कर होने वाली आतंकी वारदातें हैं उनसे अब उब चुका हूँ.
मैं यह मानता हूँ कि पकिस्तान पर एक बड़ा हमला नहीं किया जा सकता और न ही करना चाहिए क्योंकि इससे हम पाकिस्तानियों को न ही ख़त्म कर पायेंगे और न ही हम उनके दिलों में मौजूद नफरत को ही मिटा पायेंगे. अतः हमला नहीं करना चाहिए पर पाक-अधिकृत-कश्मीर के आतंकी कैम्पों पर हमला ज़रूर करना चाहिए, पाकिस्तान को सावधान करते हुए और उसे कश्मीर के इस हिस्से में रह रहे आतंकवादियों से दूर रहते हुए.

मुझे लगता है कि तुम इस बात से भी सहमत नहीं होओगे, अतः एक सवाल छोड़ जाता हूँ, शायद यह कुछ और सोचने पर विवश करे-
तुमने चीन की बात कैसे कर दी ?
क्या करना है तरक्की करके !
w.t.c. (वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर) कहाँ गया ? होटल ताज, नरीमन हाउस कि क्या हालत है !
यह सब भवन तरक्की का ही परिणाम थे, पर लगभग सभी क्षत-विक्षत हो चुके हैं. चीन तो मात्र अपवाद है, अभी एक हमला चीन पर भी हो जाए तो कहाँ जायेगी उसकी तरक्की ?
और अमेरिका के आर्थिक मंदी में धँसने का कारण युद्ध नहीं थे, उसकी ग़लत आर्थिक नीतियाँ रहीं. हाँ यदि ये युद्ध नहीं हुए होते तो उसकी वह इस मंदी में थोड़ा सा और बेहतर सुधार ला पाता.
और ओबामा ने युद्ध का विरोध करके नहीं बल्कि आतंकवाद का विरोध करके यह चुनाव जीता है. यानी कि युद्ध और वह भी ज्यादा कुशलता के साथ. क्या याद नहीं जब ओबामा ने राष्ट्रपति बनते ही पहला वक्तव्य यही दिया था कि हमारा पहला काम होगा - लादेन का सफाया यानी कि युद्ध न कि शान्ति.
हालाँकि युद्ध लड़ पाना उचित नहीं है पर एक छोटी सैनिक करवाई ज़रूरी है, पर मैं जानता हूँ कि वह भी नहीं होनी है.
तुम्हारे इस लेख को पढ़कर मज़ा आ गया, अच्छी दिमागी कसरत हो गई. :)
मज़ा आया, जब विचार टकराते हैं तो ही हम सही सोच को पा सकते हैं.
यदि कोई बात ग़लत लगी हो तो... :)
भारत की रक्षा हेतु यह ज़रूरी है.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

वरुण भाई,
तरक्की ज़रूरी है, मैं उस बात से इनकार नहीं करता हूँ पर आर्थिक, सामाजिक विकास के साथ सामरिक शक्ति का विकास और दक्षेस में भारत का सुपर पॉवर यहाँ तक कि एशिया में सुपर पॉवर बनने कई और दृष्टि रखनी चाहिए.
एक सही शब्द है - समग्र विकास.

Sachin said...

पाक पर हमला भले ही ना करें, उसके द्वारा अधिकृत कश्मीर में तो आतंकी कैंप उड़ा सकते हैं..?? पिछले युद्धों में हमें भले ही कुछ ना मिला हो लेकिन दुनिया को ये पता चल गया है कि भारत युद्ध लड़ना जानता है और जीतना भी (चीन के मामले को छोड़कर)...अमेरिका और चीन का उदाहरण अच्छा है, लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि इन्होंने सबसे पहले अपनी युद्धप्रेमी की पुख्ता छवि बनाई और उसके बाद इतनी तरक्की की। हम भले ही युद्ध ना लड़ें लेकिन इस बार भभकी देना तो बहुत जरूरी है दोस्त....बिना जहर के तो साँप को भी लोग नहीं गिनते...इस बार हमें अपना गरल और दाँत के साथ फुफकारना भी पड़ेगा...हमारे अस्तित्व का सवाल है। और हाँ, राजीव जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ मैं..।