Varun Kumar Jaiswal

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Thursday 25 December, 2008

भारतीय भाषाओँ की उन्नति कैसे हो ..!!!??? एक जनसर्वेक्षण


हम सभी भारतीय हैं अतः यह बात तो तय है कि हमारी मातृभाषा कोई कोई भारतीय भाषा ही है |
आज के परिदृश्य में मातृभाषा को केवल परिवार की भाषा के रूप में ही स्वीकार किया जा रहा है |
जबकि किसी भी भाषा को वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए यह आवश्यक है कि भाषा को पहले सिर्फ़ संस्कार की वरन् बाजार की और रोजगार की भाषा के रूप में भी जाना जाता हो |

  • क्या भारतीय भाषायें इस चुनौती के लिए तैयार हैं ?
  • सामान्यतया यह कहा जाता है कि भारतीय भाषायें तकनीकी रूप से काफी उन्नत बनाई जा सकती हैं किंतु ये कथित उन्नत भाषा कैसे व्यापक रूप में स्वीकृत होगी ?
  • क्या शासकीय दंड का प्रयोग किए बिना हम भारत में अपनी भाषाओँ की प्रायोगिकता को व्यवहारिक बना पायेंगे ?
  • भारतीय भाषाओँ की महत्ता को विश्व स्तर पर साबित करने के लिए कैसी क्रांति की आवश्यकता होगी ?
  • कैसे भारतीय भाषायें भारतीयों के साथ - साथ विश्व जनमत के लिए भी सर्वोत्तम विकल्प बन सकती हैं ?
  • क्या भारतीय भाषायें भारत के स्वप्नों की वाहक बन सकती हैं ?
मित्रों उपरोक्त प्रश्न हम सभी जनों के मष्तिस्क में प्रायः उमड़ते रहते हैं |
आख़िर भाषा के विकास के साथ - साथ उसको स्वीकृत कराने का उत्तरदायित्व हम कैसे भूल सकते हैं ?
अतः मेरी आप सभी से गुजारिश है कि इन प्रश्नों के उत्तर में अपना बहुमूल्य सुझाव देकर मेरा उचित मार्गदर्शन करें |
कृपया टिप्पणियों को देते समय सम्भव हो तो इस बात का ध्यान रखें कि सुझावों का बार -बार दोहराव ना हो रहा हो |
हम यदि सोच सके तो निष्कर्ष सार्थक हो जाएगा |

" सत्यमेव जयते " |

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

आपने एक हल का संकेत दे ही दिया है - सरकारी नियन्त्रण्। भारतीय भाषाओं की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि भाषाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी से सरकारों ने पूर्णतः मुंह मोड़ लिया है। पूरी व्यवस्था और नीति-निर्धारण मैकाले की आत्मा को खुश करने के हिसाब से किया जा रहा है। इससे लडने की महती आवश्यकता है। 'आम जनता' को जगाना होगा। भारतीय भाषाओं के लिये मैकालेवादी प्रवक्ताओं से निपटना होगा। भारतीय भाषाओं के लिये हजारों तरह के छोटे-बड़े प्रयत्न करने होंगे। नई तकनीकी भारतीय भाषाओं के लिये अड़चन नहीं बल्कि वरदान साबित हो सकती है यदि हम तकनीकी रूप से सतर्क होकर इनके उपयोग में भारतीय भाषाओं को सक्षम बनाते चलें।

राज भाटिय़ा said...

वरुण जी मै जर्मन मै रहता हुं, यहां भी हर बीस कोस पर भाषा बदलती है, ओर हर राज्य की भाषा के बोल चाल का अलग ढंग है, लेकिन राष्ट्रिया भाषा एक ही है, जो स्कुलो ओर दफ़तरो मै चलती है, इग्लेण्ड यहां से ९०० की मी दुर है, लेकिन आप को कोई भी जर्मन अग्रेजी बोलता नही दिखाई देगा, ऎसा नही की यह पढे लिखे नही, लेकिन सिर्फ़ अग्रेजी बोलने से आदमी पढा लिखा होता है यह सिर्फ़ हमारी गुलामो की मान्सिकता ही है, पुरे विश्व की नही.
जर्मन ने दुनिया मे सब से ज्यादा तरक्की की अपनी भाषा के बलबुते पर अग्रेजी नाम की बेसाखी का सहारा नही लिया, यहां के लोग अग्रेजी बोलने बाले को किस नजर से देखते है, अब यह बताने की जरुरत नही( अगर कोई जर्मन जर्मन के साथ अग्रेजी बोले तो)
इन लोगो को अपनी भाषा से, अपने देश से प्यार है, ओर हमे अमेरिका से, इग्लेन्ड से, उन के ढगं से, उन की भाषा से प्यार है, ओर जब हमे अपनी राष्ट्रिया भाषा से प्यार ही नही तो .....बाकी बाते बेकार है
धन्यवाद