Varun Kumar Jaiswal

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Sunday 7 December, 2008

२०२० ईसवी में राजनैतिक नेतृत्त्व कैसा हो ...? अभिजात्य वर्ग का निर्णय !!



भारत की वर्तमान राजनैतिक कमजोरियों के कारण आतंकी हमले झेलने को अभिशप्त भारत माँ के बच्चों ने पहली बार मुंबई की सड़कों पर इस प्रकार से अपना प्रखर विरोध जताकर आने वाले राजनैतिक भविष्य की एक झलक दिखला दी है | आज देश की जनता कोने-कोने से उठकर नाकारा नेतृत्व के प्रति अपना रोष ना सिर्फ़ प्रकट कर रही है , बल्कि हाल ही हुए मतदान का अभूतपूर्व प्रतिशत यह भी बतलाता है कि यह जनता समग्रता और एकता के साथ सही नेतृत्व की तलाश में छटपटा रही है |

कुछ लोगों ने कहा कि यह लिपस्टिक और फैंसी ड्रेस पहने कभी वोट न डालने वाले अभिजात्य वर्ग का दिखावा मात्र है और ऐसी जनता जिनमे आधे लोगों ने कभी जीवन की वास्तविक चुनौतियों का सामना ही ना किया हो , और शायद ही इनमे से किसी को देश के अमर शहीदों का नाम याद हो | यहाँ तक कहा गया कि ये लोग MTV के उदघोषकों के नाम तो याद रख सकते हैं किंतु देश के राष्ट्रपति का भी नाम मुश्किल से ही जुबां पर आ पाता है |राजनेताओं ने इन पर जम कर छींटाकसी की और मजाक भी उड़ाया | जवाब में इस कथित अभिजात्य वर्ग ने मीडिया को हथियार बनाते हुए नेताओं को भी आईना दिखला दिया और साथ ही साथ कईयों को माफ़ी मांगने पर मजबूर भी कर दिया |

उपरोक्त वर्णित पूरे घटनाक्रम ने २०२० ईसवी के राजनैतिक भविष्य की ओर उम्मीदों की लड़ी बिखेर दी है | मेरी समझ में मुंबई में हुए प्रदर्शन से भारत के असंतोष की सही झलक मिलती है जो की अंततः भारत के दिशा और दशा तय करेगी | आप पूछेगें यह कैसे सम्भव है ? आइये जरा हम विश्लेषण करते है ताकि सही तस्वीर हमारे सामने आए |

१ । २०२० तक भारत की जनसँख्या ९० % साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगी | ऐसे में इस अभिजात्य वर्ग की सोच ही भारत के ६५ % युवाओं पर अपना सीधा प्रभाव डालने में सक्षम होगी | ये युवा शक्ति ही भारत के राजनैतिक भविष्य का निर्धारण करने वाली है |

२। हो सकता है कि इस अभिजात्य युवा पीढ़ी को शहीदों के नाम और देश के इतिहास , भूगोल के बारे में बहुत ज्यादा कुछ न पता हो लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज भारत यदि सपेरों और साधुओं के देश से बढ़कर विश्व स्तर पर एक महाशक्ति के रूप में उभरा है तो इसी आभिजात्य युवा वर्ग कि मानसिक उडानों के कारण न की बात - बात पर राजनैतिक लोगों द्वारा उकसावे पर आंदोलनरत रहने और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करने वाले ठलुओं के कारण |

३। आज का भारत निर्माण ९ से ५ की नौकरी करने वाले सरकारी बाबुओं से नही बल्कि ९ से ९ तक जी तोड़ श्रम करके अपने काम की पूरी कीमत वसूल करने वाले अभिजात्यों के कारण ही प्रगतिशील है | अभी ऐसी पीढी ने अपने जागरूक होने की सिर्फ़ एक बानगी भर ही पेश की है |

४। भारत का सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ वर्ग भी ऐसी ही अभिजात्य श्रेणी को अपना आदर्श मानते हुए अनुसरण करने का प्रयास करता है वह दिन दूर नहीं जब ये राजनैतिक अनुसरण के लिए भी इसी अभिजात्य वर्ग से दिशा निर्देश लेगा |

५। सबसे पहले इसी अभिजात्य वर्ग ने भारत की सामाजिक बुराइयों जैसे अश्पृश्यता , अमीरी-गरीबी , साम्प्रदायिकता इत्यादी को परे हटाकर उच्च सहकार्य संस्कृति विकसित की है |

६। यह अभिजात्य वर्ग आने वाले समय में पेशेवर राजनीतिज्ञों की मांग करेगा जिससे की कोई लुच्चा कभी भी राजनीती में आने की कोशिश भी न कर सके |

७। राष्ट्र के रूप में हमारा भविष्य इसी वर्ग की सोच पर निर्भर करता है न की दो जून की रोटी को तरस रहे लोगों और उन्हें भड़का रहे राजनेताओं के हाथों में |

८। आज की राजनीति तो वैसे भी धनबल पर निर्भर करती है , भविष्य में अपनी पूंजी की ताकत पर संमृद्धि के फैसले इसी वर्ग द्वारा तय किए जायेंगे |

एक आम भारतीय होने के कारण मुझे भारत के अभिजात्य वर्ग के राजनीती को नियंत्रित करने की पहल ने बहुत ही प्रेरित किया | अगर यह आग इसी तरह से धधकती रहे तो भारत में भी किसी बराक ओबामा का राजनीतिक सीमाओं के परे अभ्युदय सम्भव है |

कृपया आप अपनी राय दें |


" सत्यमेव जयते "







5 comments:

mala said...

सत्य की सदैव जीत होती है , अत्यन्त गंभीर विचार और सुंदर प्रस्तुतीकरण , अच्छा लगा !

रवीन्द्र प्रभात said...

atyant sundar abhivyakti, bhaavpoorn rachanaa,
achchha laga padhakar, kram banaaye rakhen...!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

uttam vishleshan.

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ni:sandeh rajnaitik paridrishy men ubharate bharat ka swapn.....

ye vishleshan aapke vichar-manthan ki gaharaai ko prastut karte hain

subh-kamanaayen

Sachin said...

हाँ यह बात सही है। लेकिन देश के युवाओं को यह भी सोचना चाहिए कि हम भारत को महाशक्ति तो बनाएँ लेकिन यह भी ध्यान रखें कि हमारी मानसिकता भारतीय ही बनी रहे, नहीं तो हम महाशक्ति बनने के चक्कर में दिमाग से विदेशी हुए जा रहे हैं।