" सबसे पहले मेरे घर का ,
अंडे जैसा था आकार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही , है संसार |
फ़िर मेरा घर बना घोंसला ,
सूखे तिनकों से तैयार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही, है संसार |
फ़िर मैं निकल गयी शाखों पर ,
हरी भरी थी , जो सुकुमार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही , है संसार |
उड़ी जब मैं आसमान में ,
दूर तलक ये पंख पसार |
तब मेरी समझ में आया ,
बहुत बड़ा है यह संसार | "
अंडे जैसा था आकार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही , है संसार |
फ़िर मेरा घर बना घोंसला ,
सूखे तिनकों से तैयार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही, है संसार |
फ़िर मैं निकल गयी शाखों पर ,
हरी भरी थी , जो सुकुमार |
तब मैं यही समझती थी बस ,
इतना सा ही , है संसार |
उड़ी जब मैं आसमान में ,
दूर तलक ये पंख पसार |
तब मेरी समझ में आया ,
बहुत बड़ा है यह संसार | "
मित्रों , कक्षा तीन के पाठ्यक्रम में मैंने यह कविता पढ़ी थी | कवि महोदय का नाम मेरे स्मृति पटल से गायब हो चुका है , किंतु कविता सरल और सुंदर होने के नाते अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही | वैसे तो यह एक प्यारी चिड़िया के जीवन की कहानी है लेकिन कवि ने अत्यंत सूक्ष्म रूप से हमारी दकियानूसी पर चोट की है | कैसे एक चिड़िया जीवन के बदलते हुए मूल्यों को समझते हुए अपनी सोच के आकार को बढाती चली जाती है , और एक हम हैं कि इतने सुंदर मानव - जीवन को धार्मिक , सामाजिक , जातीय , राजनैतिक इत्यादि तमाम तरह के बन्धनों में जकडे हुए है |
प्यारी चिड़िया का यह संदेश बताता है कि हमें भी जीवन में सोच का दायरा समय के साथ - साथ बढ़ाना ही चाहिए | स्वयं की आत्ममुग्धता से बचकर जीवन के मूल्यों के निर्धारण का वक्त आ गया है |
समझो ..." बहुत बड़ा है यह संसार " |
" सत्यमेव जयते "
9 comments:
अच्छी और सच्ची कविता।बधाई आपको।
बहुत अच्छी कविता....कहां पढी थी आपने....हमने तो कभी नहीं पढी ऐसी कविता।
वाह। सुन्दर! शानदार। पढ़्वाने के लिये शुक्रिया!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
अच्छी सोच....सार्थक प्रस्तुति.
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सस्नेह बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
सही कहा वरुण आपने ,हम कूप-मंडूक बने रहे तो शायद कभी नहीं जान पाएंगे इस विस्तृत संसार को .हमें समय के साथ चलना होगा या यूं कहिये उससे भी आगे जाना होगा .और हाँ हिंदुत्व के पञ्च सूत्र भी पढ़े .विचार मंथन के बाद आप जो नवनीत परोसते हैं ,वो अत्यंत लाभकारी है
मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं
लाजवाब रचना है.... हम जितना देखते है या यूं कहें हमारी नजर जहां तक पहुंच सकती है उसे ही हम पूरी दुनिया मान लेते है.... वास्तव में हम उस दुनिया से अनजान ही रहते है जो हम देख नहीं सकते... यह जिंदगी की सच्चाई है... अंडे में रहता चुजा अंडे को ही अपनी दुनिया समझता है उसी तरह हम भी जिस दुनिया में जीते है उसे उतना ही बडा मानते है जितना हम देख सकते है
जैसे एक लम्हा और बिता.
कही से आवाज आई
ले तू और कुछ सिखा.................
हम हर लम्हें में कुछ न कुछ सिखतें हैं. इसीलिए किसी भी चीज को अंत न समझें.
आपको प्रकर्ति सिखाती हैं हमेशा बस आपको भी उस की तरह उड़ना सीखना होगा.
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