वैसे तो हम सभी भारत-भूमि में जन्म लेने के कारण ही हिंदू हो जाते हैं लेकिन हिंदू होने की यह परिभाषा सिर्फ़ भूगोल के ही कारण है क्योंकि हिंद का निवासी तो हिंदू ही कहलायेगा | लेकिन जब एक बार हम अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं तब धर्म व्यक्तिगत हो जाता है और हम यदि चाहें तो अपने जन्म से साथ जुड़े धर्म को भी बदल सकते हैं | मैं भी जन्म से हिंदू हूँ और सिर्फ़ भूगोल ही नही बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी | मेरा धर्म एक व्यक्तिगत दर्शन है जिसको मैं संतुष्टि के साथ जी सकता हूँ और साथ ही साथ स्वयं का तर्क भी विकसित कर सकता हूँ | मैंने अपने दर्शन को विकसित करने के लिए अन्य महान धर्मों एवं उनकी विशेषताओं का भी अद्ध्ययन किया लेकिन अपने जीवन को मानवता के लिए तैयार करने की प्रेरणा मुझे ' हिंदुत्व के पंचसूत्र ' से मिली | आज इनका परिचय एक बार पुनः कराना चाहता हूँ |
" सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयः |
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुखभाग्भावेद || "
आज जबकि सम्पूर्ण विश्व ही युद्धों और आतंकी कार्यवाहियों से त्राहि-त्राहि कर रहा है और भूख और गरीबी के साथ-साथ पर्यावरण क्षरण भी विकराल समस्या के रूप में हमारे सम्मुख चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है , ऐसे में प्राणीमात्र की मंगल कामना का यह मंत्र ही मुझे कर्म करने हेतु अपार आध्यात्मिक शक्तियाँ प्रदान करता है | इस दर्शन की प्राप्ति सिर्फ़ हिंदुत्व में ही सम्भव है अतः यही कामना मुझे हिंदू बनाये रखती है |
" यदा यदा हि धर्मस्य , ग्लानिर्भवति भारतः |
अभ्युथानम् धर्मस्य , तदात्मानं सृजाम्यहम् || "
गीता में श्रीकृष्ण के मुख से निकले हुए इस श्लोक ने पूरी मानवता को न केवल ईश्वर की न्यायप्रियता के प्रति आशान्वित किया है बल्कि यह भी बताया कि जब - जब मनुष्य की धर्म से विमुखता बढ़ेगी तब ईश्वर किसी ना किसी रूप में धर्म की पुनर्स्थापना हेतु हमारे साथ होगा | इस दर्शन ने ना सिर्फ़ मेरी निराशा को ही जीता बल्कि जीवन को अनुरागपूर्वक जीने की अतुल्य दीक्षा भी दी |
" अप्पः दीपो भवः || "
गौतम बुद्ध ने इस दर्शन के माद्ध्यम से मानवता को अपना प्रकाश एवं मनुष्य को अपना ज्ञान स्वयं बनने की जो प्रेरणा दी है उसकी कोई भी मिसाल अन्य किसी भी धर्म में नही मिलती जहाँ औरों ने अपनी बात को ही अन्तिम सत्य साबित करने की कोशिश की है वहीं यह सूत्र मानवता को नित्य नए तर्कों की गहराई तक ले जाता है |
" यतस्य धार्यति , सः धर्मेण || "
जो भी समय की प्रासंगिकता के साथ धारण किया जाए वही धर्म है | धर्म की इससे सुंदर परिभाषा आपको कहीं भी नहीं मिलेगी | यह एक ऐसी परिभाषा है जो की किसी भी व्यक्ति को धार्मिक स्वार्थ और बंधनों से मुक्त करती है |इसे अपनाकर कर्तव्यपालन हेतु किसी भी सीमा तक जाया जा सकता है |
" वंदे मातरम् |
सुजलाम् , सुफलां , मलयजशीतलाम् |
शस्यश्यामलाम् मातरम् |
वंदे मातरम् |
शुभ्रज्योत्सना पुलकितयामिनिम् |
पुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनिम |
सुहासिनीं सुमधुर भाषिनीम् |
सुखदाम् वरदाम् , मातरम् |
वंदे मातरम् || "
मातृभूमि की ऐसी भावपूर्ण वंदना अन्य किसी मतावलंबी के लिए कत्तई सम्भव नहीं है | ऐसा तो धरती को माँ मानने वाले हिंदू ही कर सकते हैं |
अब आप सभी को यह समझ में आ गया होगा कि मैं हिंदू क्यों हूँ ?
मेरी समझ में विश्व का जो भी व्यक्ति इन सभी सूत्रों में आस्था रखता है वो हिंदू ही है |
" सत्यमेव जयते "
12 comments:
भाई, आप की बातें सब सही हैं लेकिन लोग व्यष्टि से समष्टि की ओर बढने की दिशा तो तय करें।
गर्व से कहो हम हिंदु हैं...
अपने अंतश की गहराईयों से कहो हम हिंदु है......
बहुत ही सार्थक व्याख्या कर दी आप ने.
वंदे मातरम !
हम भी गर्व से कहते हैं कि हम हिंदू हैं
kitna accha gyan mila mei apeksha bhi nahi kar sakta man ko bahut hi accha laga....
अक्षय-मन
मन प्रसन्न हो गया.
प्रविष्टि के लिये धन्यवाद.
मैं हिन्दू हूँ कट्टरता की हद तक हिन्दू हूँ . लेकिन मेरे पास कोई प्रमाण नही न मैं कोई फर्जी हिन्दू बाले नारे लगाने वाला हिन्दू हूँ
सुंदर हैं ...!
bahut sahee aur saarthak vyaakhyaa,badhaayeeyaan !
बहुत अच्छे विचार हैं आपके वरुण..।
आपका पाठ बहुत जानकारी बढाने वाला है।
दीपक भारतदीप
मैं तो पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त को हिन्दुत्व का अभूतपूर्व स्तम्भ मानता हूं। और इसमें मुझे मिली फ्रीडम तो बेतहाशा है।
लेख बहुत बहुत पसंद आया | ये उम्र और इतनी दमदार लेखनी ?!!! यह लेखन यात्रा रुकने मत देना | मैं बतकही पत्रिका के द्वितीय अंक हेत इसको जोड़ने की अनुमति चाहता हूँ अलग से ईमेल अनुरोध भेज रहा हूँ | अवध-प्रवास [फैजाबाद ] पै आवे के सुकरिया||
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